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(.२८ ) महा चौर अपनी आत्म उन्नति कर सकते हैं. किन्तु एक मिथ्यावादी का कल्यान नहीं हो सकता है। विश्व में करोड़ों पाप हैं वे पाप तो नदी के समान हैं और मृषावाद का पाप समुद्र के समान है, . मृपावाद रूपी समुद्र में मानव समाज के इस विश्व के करोड़ों पाप वास करते हैं. चाहे जैसा पापी से पापी, नीच से नीच अधम से अधम, चंडाल से चंडाल, भी अपना जन्म सुधार सक्ता है, किन्तु मिथ्यावादी अपना जीवन नहीं सुधार सकता है.
सत्य का प्रभाव अरणक श्रावक का अधिकार श्री ज्ञाताजी सूत्र में चलता है. जिसमें वर्णन है कि अरणक श्रावक को देवता ने बहुत ही उपसर्ग दिया सैकडों मनुष्य और करोड़ों की संपत्ति से भरा हुआ जहाज डुबा देने की देवता ने तैयारी की.
करोड़ों की संपत्तिका नाश होरहा है व सैंकड़ों मनुष्य मर रहे हैं जिससे उनकी सैंकड़ों स्त्रियां विधवा बनती हैं, सैकड़ों माता पिता पुत्र विरह से दुःखित होवेंगे, हजारों पुत्र पिता के विरह से तडफ तडफ कर मर जांवेंगे इतनी विकट समस्या सामने खडी होने पर भी अरणक श्रावक - अपने सत्य वृत में दृढ रहे और आखिर में उनकी विजय