Book Title: Jain Shiksha Part 03
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 370
________________ ( १३१ ) वीर का समभाव विश्व व्यापी हो गया । बन को धुजाने वाला सिंह आज वीर समवमरण में ܐ वीर जैसा शांत दयालु करुणा मूर्ति दिखता है । बनका भक्षक सिंह आज वनका रक्षक बन गया है । सिंह जितना क्रूर था उतना ही आज दयालु होगया है ॥ वितरागी की छाया में वितरागी ही वास करते हैं । समभावी की छाया समभावी को ही मिल सकती है । विषम भावी वैर भावी, ईर्षा और द्वेष के फुहारे जैसी वृत्तिवाले मनुष्य वीर के समसरण से, वीर के शासन से, क्रोड़ों योजन दूर उल्लू की तरह अंधेरे में सडत रहते हैं । वीर के समवसरण में सब जंगली, क्रूर, घातकी और हिंसक प्राणी भी अपने विषम स्वभाव को भूलकर कुटुम्ब भाव से परस्पर रहते हैं और एक दूसरे के संतान की प्रतिपालना करते हैं । सिंहनी गाय के बच्चे को दुग्ध पान कराती है और गाय सिंहनी के बच्चे को दूध पिलाती ' है वीर समवसरण के जंगली जानवरों में भी कितनी उदारता ! कितनी मैत्री भावना ? और किसी काल में वीर शासन के प्रकाशमान साधु या श्रावक मेरे तेरे झगड़ों में पड़कर सम्प्रदायी भेद भाव बढाकर आपस में लड़ते झगड़ते हों तो वे वीर शासन में क्या कहलाने योग्य हैं ? 1 जब पशुओं में इतनी सहिष्णुता और उदारता उत्पन्न हो जाती है तो वीर पुत्र साधु या श्रावक, अपनी सत्ता, अहमन्यता, धर्म सत्ता, या धनसत्ता समाज पर फहराय ܐ

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