Book Title: Jain Shiksha Part 03
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 371
________________ ( १३२ ) तो क्या वे वीर शासन की छाया मात्र के भी अधिकारी हैं ? वीर संतान का नाम धरकर आप साधु, या श्रावक के नाम से पुकारे जायें और उनके जीवन मे क्रूर पशु जितना भी परिवर्तन न हो तो उन मनुष्यों को क्या मानव समझें जायँ ? वीर समवसरण की, वीर शासन की असर मानव तथा दानव के हृदय पर अवश्य हो अगर जो न हो तो वह सच्चे मानव या दानव नहीं है । फिर चाहे वह इंद्र हो या चक्रवर्ती । वीर के समवसरण के हिंसक प्राणियों में भी ऐसी दया, नम्रता, समता, क्षमा, सहिष्णुता, उदारता या मित्रता दिखती है तो वीर शासन के वीर पुत्रों में कितने गुण होना चाहिये ? वीर समवसरण मे सिंह, गाय, बाघ, बकरी, चूहा, बिल्ली मयूर सर्प आदि परस्पर विरोधी प्राणी एक स्थान पर बैठें, खेलें, क्रीडाकरें, कूदें और खानपान करें तब वीर शासन के पूज्य साधु साध्वी अपने को पांच महाव्रत पांच समिति और तीन गुप्ति के धारक गिनने वाले एक दूसरे के साथ एक मकान में उतरने में, व्याख्यान देने में, शास्त्र की बातें पूछने में बात चीत करने में, बिमार को शांति देने में, संथारे के समय क्षमा मांगने में या उन्हें धर्म १) वचन सुनाने में भी संकोच रखे, तो ऐसे वरिपुत्र शासन के योग्य गिने जाये या नहीं? इसका पाठक स्वयं विचार करें। ―――

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