Book Title: Jain Shiksha Part 03
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 372
________________ ( १३३ ) प्रभु महावीर के महलों में भगवान् महावीर अपने लिये विशाल दिव्य महल छोड़ गये हैं, किन्तु क्या हमने उन महलों के प्रति कभी दृष्टिपात भी किया है ? चलो, आज मैं आपको उन महलों में ले जाता हूं, थाड़ा लक्ष्य रखकर के देखो कि वहां क्या २ हो रहा है। देखिए ! भगवान का बनाया हुआ संयम का पक्का कोट तो बिलकुल ही डिग गया है, और । साध्वी रूप दिवाले बहुत ही जीर्ण हो गई है, महलों क भीतर चारों दिशाओं में मतमतांतर, गच्छ, संघाडे, संप्रदाय और जड़क्रिया के चूहे दौड़ धाम मचा रहे हैं और उन दिव्य पवित्र महलों को खोखला कर रहे हैं । महलों के आंगन में ज्ञानरूप बगीचे की रसमय भूमि के सत्त्व को निमूल कर देने वाले बहम, अंधश्रद्धा, ईर्षा, द्वेष, निंदा, कलह भीरुता और ममत्वरूप बहुत ऊंचा घास आर कास उग गया है। अविकता स्वच्छंदता, मिथ्या मान्यता मंत्र तंत्र, विलास और लालसा रूप कुत्ते, बिल्लियां. चिड़ियां, चमगादड आदि के निवाससे उस में दुर्गध छा गई है, जरा ऊंची निगाह करके देखो तो सुशील, श्रावक व श्राविका रूप ऊपर का छप्पर तो बिलकुल ही चलना जैसा जर्जरित हो गया है । मिथ्याडंबर रूप मूसलधार जल के आघात से बहुत गहरे ऊंडे गड्डे पड़ गये हैं।

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