Book Title: Jain Shiksha Part 03
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 378
________________ ( १३९ ) तुटेल तलीआनो घड़ो, जलथी भराये क्येम करी ||२२|| मैं परभवे नथी पुण्य कीधुं, ने नथी करतो हजी तो आवता भवमां कहो, क्या थी थशे हे नाथजी १ भूत, भावि ने सांप्रत त्रणे, भवनाथ हुं हारी गयो । स्वामी त्रिशंकु जेम हुं, आकाशमां लटकी रह्यो ||२३|| अथवा नकाएं आप पासे, नाथ शुं बकबुं घं । हे देवताना पूज्य ! आ चारित्र मुज पोता तनुं ॥ जाणो स्वरूप ऋण लोक नुं तो, माहरु शुं मात्रआ ? ज्यां कोड़नो हिसाब नहीं त्यां, पाइनी तो वात क्यां ||२४|| ( शार्दुल ) ★ " ताराथी न समर्थ अन्य दीननो, उद्धारनारो प्रभु । म्हाराथी नहिं अन्य पात्र जगमां, जोतां जडे हे विभु, मुक्ति मंगल स्थान तोय मुजने, इच्छा न लक्ष्मी तणी । आपो सम्यग् रत्न श्याम जीवने, तो तृप्ति थाये घणी ॥ २५ ॥ ब्रह्मचर्य विषे सुभाषित दोहे निरखीने नवयौवना, लेश न विषय निदान | गणे काष्टनी पूतली, ते भगवान समान ॥ १ आ सघळा संसारनी, रमणी नायक रूप । ए त्यागी, त्यायुं बधुं, केवल शोक स्वरूप ॥ २ ॥ एक विषयने जीततां, जित्यो सौ संसार । - नृपति जिततां जितिये, दळ, पुरने अधिकार ॥ ३ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388