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एक बार भगवान महावीर खुद गोचरी पधारे । भगवान महावीर को इस समय छः मास के तप का अभिग्रह था । द्वेषियों ने चन्दनवाला के बेड़ियाँ डाल रखी थी। उसे तेले X का तप था । जिस समय भगवान महावीर पधारे उस समय उसके पास उड़द के बाकुले थे । उसने इसका दान दिया । शुद्ध भाव से दान देने से चन्दनबाला के सब दुःख दूर हो गए। उसकी हथकड़ियां टूट गई । उसके केश मुंडन किए हुए थे । उनकी जगह शोभायमान केश आ गए। साढ़े बारह करोड़ सोना-मोहरों की दृष्टि हुई ।
चन्दनबाला को धन की इच्छा नहीं थी । उसने सब धन परोपकार में देकर दीक्षा ली। भगवान महावीर के छत्तीस हज़ार आर्याएँ हुई। उन सब में आप श्रेष्ठ थीं ।
अभिग्रह = गुप्त पच्चखाण, तपका विशेष नियम । x तेला = तीन दिन के एक साथ उपवास ।