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होने पर भी खूब शांति से बिना आवाज के वहां की दुकानों का दैनिक व्यवहार चलता रहता है परन्तु भारतवर्ष में धर्म स्थानों में भी जहां कि शास्त्र पढ़े व श्रवण किये जाते हैं वहां पूर्ण कोलाहल सुनाई पड़ता है ।
युरोप की सब दुकानों पर One rate एकही भावके बोर्ड लगे रहते हैं. परन्तु भारतीय कितनेक व्यौपारी कहते हैं कि असत्य विना हमारा धंदा चल ही नहीं सकता है, १२ चारह लाख जैनियों में पूर्ण सत्य बोलने वाले सिर्फ १२ श्रावक भी सुनने में या पढ़ने में नही आये. मुसलमान तथा पारसी आदि हजारों एक बात बोलने वाले स्थान स्थान पर सुनाई पडते हैं, वर्तमान जैन समाज अन्य सब समाजों से विशेष गिरी हुई है युरोप के बुकसेलर (किताब विक्रेता) के वहां पर कोई पुस्तक खरीदने गया तब उस अनभिज्ञ भारतीय ने पुस्तक का मूल्य पूछा उसने एक रुपया मूल्य बताया दुबारा पूछने पर १ रुपया तिसरी वक्त पूछने पर १ || रुपया और ४ थी दफा पूछने पर १||| रुपये मूल्य बतलाया. भारतीय ववरा गया तव युरोपियन पुस्तक विक्रेता ने खुलासा किया कि पुस्तक का मूल्य तो १ ही रुपया है परन्तु आपने मुझ से तीन वक्त पूछा जिससे मेरे बोलने के बारह आने और बढगये
पाठकगण युरोप के व्यापारीयों की सत्य निष्ठा, वचत प्रियता देखिये और आप अपने को देखिये उन लोगों की भाषा में सत्यता प्रियता और मधुरता है परन्तु