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(६६ ) पाठ ३६–अठारह पाप व धर्म स्थानक ।
(१) हिसा-किसी का भी दिल दुखाना | अहिंसाकिसी का जी नहीं दुखाना ।
(२) झूठ-असत्य, अप्रिय या अहितकारी बोलना। सत्य-सत्य, प्रिय और हितकारी बोलना ।
(३) चौरी-अनीति से कोई भी चीज प्राप्त करना। ईमानदारी-नीति और न्याय से कोई भी आवश्यक वस्तु प्राप्त करना।
(४) मैथुन-गुप्त अंग से कुचेष्टा करना । ब्रह्मचर्य-गुप्त अंगों का संयम रखना।
(५) परिग्रह-किसी भी चीज पर मोह रखना। अपरिग्रह-किसी भी चीन पर मोह (ममत्व) न रखना।
(६) क्रोध-प्रतिकूलता में अरुचि । क्षमा-प्रतिकूलता में धैर्य ।
(७) मान-खुद को बड़ा समझना । नम्रता-खुद को छोटा मानना।
(८) माया-भूल को छिपाना-कपट करना। सरलता-भूल को दरकाल मंजूर करना-साफ दिल रखना।
(8) लोभ-जरूरत से ज्यादा इच्छा करना।र - जरूरत का भी घटाना।