Book Title: Jain_Satyaprakash 1952 11 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "ॐ अहम् ॥ अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समितिनुं मासिक मुखपत्र जेशिंगभाईनी वाडी : घीकांटा रोड : अमदावाद (गुजरात) क्रमांक वर्ष : १८ अंक : २ विमस. २००८ : वी. नि.स. २४६८ : ४. स. १८५२ || ति १६ १३ : शनिवार : १५ नवेपर २०५ एक सचित्र कल्पसूत्र (सं० १५६५)की प्रशस्ति संग्राहक :-डॉ० बनारसीदास जैन एम्. ए. पीएच्. डी. जीरा (जिला फीरोज़पुर, पूर्वी पंजाब )के जैन भंडारमें सचित्र कल्पसूत्रकी एक प्रति है जिसमें लगभग १५ चित्र हैं । इसकी पत्र-संख्या १२८ है । प्रशस्ति इस प्रकार है श्रीमान् जगज्जीवनजीवनाभो, बभूव वर्यो व्यवहारिवगर्गे । श्रीधर्मकृत्ये प्रसितः प्रसिद्धः, कीर्त्या सुमत्या भुवि चण्डसिंहः ॥ १॥ तस्याङ्गजोऽजनि निजाऽन्वयदीपदीप्रः, सिद्धाचले कृतसुविस्तरसप्तयात्रः । श्रीअर्बुदाचलविनिर्मितचैत्यभक्तिः, श्रीपेथडाभिधमहापुरुषप्रवीणः ॥ २॥ तस्याऽन्वयेऽतिविमले मण्डलिकसंघनायको जयति । विमलाचलोज्जयन्ते वित्तं सफलीकृतं येन ॥ ३ ॥ श्रीजैनशासनरतस्तस्य सुतष्ठाइयाभिधो धीमान् । यस्योभयपक्षसिता वरमणकाई जनी जज्ञे ॥ ४ ॥ तत्कुक्षिशक्तिमौक्तिकमणितुल्या बान्धवास्त्रयो भान्ति । परबत-डूंगर-नरवदनामानः संघकार्यवरधुर्याः ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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