Book Title: Jain_Satyaprakash 1943 03 04
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१८ ધર્મની એવી ઉત્કટ અને શુદ્ધ આરાધના કરી કે જેના પ્રતાપે સંસારમાં બે જ ભવ રહી, કર્મક્ષય કરી ભવપાર થશે, સિદ્ધ થશે, બુદ્ધ થશે. ધન્ય છે તેમના ધર્મપ્રેમને, તેમની ધર્મશ્રદ્ધાને અને ધન્ય છે એમના ધર્મોપદેશક ગુરૂને કે જેમણે પોતે તરવાનો માર્ગ લઈ શિષ્યને તરવાનો ઉપદેશ આપ્યો. રાજર્ષિનું અનુપમ બિરૂદ પામનાર આ પરમાતોપાસક મહારાજાને સાધમિક બધુઓ પ્રત્યેનો પ્રેમ અને ભક્તિ પણ બહુ જ આદર્શરૂપ છે. આજના શ્રીમંત જેને પોતાના ધર્મ પ્રેમી, શ્રદ્ધાળુ અને ધર્માનુષ્ઠાનમાં તત્પર શ્રાવક બધુઓને સુખી અને સમૃદ્ધ કરવા પ્રયત્ન કરે એ જરૂરનું છે. આજની ભીષણ બેકારીમાં શદાતા શ્રાવકને સત્પાત્ર સમજી દાન આપી આત્મકલ્યાણની ઈચ્છક શ્રાવકોએ જરૂર સત્પાત્ર દાનના ઉપાસક થવાની જરૂર છે.* -स. N. _ “आरिहन्त-चैत्य" शब्दका अर्थ [ रतनलालजी डोसीको जवाब ] लेखक--पूज्य मुनिमहाराज श्री विक्रमविजयजी (गतांकसे क्रमशः) सूरिजीने चैत्य शब्दका अनेक अर्थ होना कहां स्वीकारा है इसका ख्याल न करते हुए लिख मारा है कि 'अपना हठ नहीं छोडते', किंतु हठवादी तो आप ही हैं क्योंकि सूरीश्वरजी म० ने चैत्य शब्दका कहां पर क्या अर्थ मानना इसका विवेक दिखलाया, फिर भी अपनी धूनमें अपना उल्लु सीधा कर रहे हैं। कुछ भी उपाय किया जाय मगर 'अरिहंत चेइयाणं' इत्यत्र अरिहंतकी प्रतिमा या मंदिर ही अर्थ होगा, किंतु आपका माना हुआ साधु अर्थ नहीं होगा, चैत्य शब्दका अर्थ किसी भी कोषमें साधु किया नहीं है । शतावधानी रत्नचंदजीने भी अर्धमागधी कोषमें अरिहन्त चेइय (पु०ना) 'अहंदू चैत्य' 'अरिहंत संबंधी कोई पण स्मारक चिहून' किया है। और अमरकोषमें भी 'चैत्यमायतनं तुल्ये' ऐसा है और 'चैत्यं जिनौकस्तदूबिंब' इत्यादि भी प्रमाण है ही, और प्राचीन टीकाओंके तो बहुत ही प्रमाण हैं । व्युत्पत्तिसे भी इसका 'साधु' अर्थ नहीं हो सकता है, क्योंकि 'चिति' या 'चि' धातु के सिवा दूसरा कोई धातु इसमें आ ही नहीं सकता, और आप लिखते हैं-'जिस प्रकार मन्दिर मूर्ति के इतने नाम होते हुए भी मूर्तिपूजक इन्हें चैत्य नामसे भी पुकारते हैं इसी तरह यहां भी समज ले कि साधुओंके भिक्षु, श्रमण, निर्गथ, नामोंके साथ चैत्य भी एक नाम है' ऐसा कहने मात्रसे साधुका पर्याय चैत्य नहीं बन सकता है, क्योंकि कल आपके जैसे दूसरा कोई कहेगा कि जैसा मन्दिर, जिनालय, दहेरासर आदि नाम होते हुए भी * श्री भुनिसुरसूरि त. 'पहे। रत्ना३२ 'ना आधारे. For Private And Personal Use Only

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