Book Title: Jain Satyaprakash 1938 10 SrNo 39
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 22
________________ Jain Education International [ २३९ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ १४ ८० मील पश्चिम की ओर बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिये प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण गुफाएँ बनी हुई हैं जो पाँच पाण्डवों की गुफाओं के नाम से प्रसिद्ध है। ग्वालियर स्टेट के अन्तर्गत बाग कस्बे से ४ मील दक्षिण-पूर्व कोण में बाघी (बागेश्वरी ) नदी के दक्षिण तट पर इन सुप्रसिद्ध गुफाओं का निर्माण हुआ है जो जमीन से १५० फीट ऊँची और ७५० फीट लम्बी है । गुफाएँ पहाड़ की चट्टानों को काट छाँट कर प्राकृतिकता लिये हुए बनाई हुई हैं, जिनकी बनावट भारतवर्षीय लभ्य गुफाओं से भी पहले की है। क्योंकि इन गुफाओं के देखने से सहसा बौद्धधर्म की तत्कालीन परिस्थिति का स्मरण हो आता है । गुफाओं के निर्माण का समय ईस्वीय पाँचवीं और सातवीं शताब्दी के बीच का माना जाता है जिसकी पुष्टि वहाँ पर मिले हुए ताम्रपत्रों के लेखों से होती है । गुफाओं की कला, एवं शिल्पकारी बहुत समय बीत जाने पर भी नवीनता लिये हुए माम होती है। कितनी ही बड़े आकार की बड़ी बड़ी योद्धतियों को देख कर सर्वसाधारण जनता इन्हें पाँच पाण्डब की गुफाएँ कहती है। इंत कथाओं के आधार पर लोग कहते हैं कि पांच पाण्डवोंने यहाँ अज्ञातवास बिताया था इत्यादि, जैसा कि प्रायः और गुफाओं तथा जलस्रोतों के विषय में भी यही कहा जाता है, किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । वुद्ध के जीवन की तीन मुख्य घटनाएँ प्रसिद्ध है : बोधिवृक्ष के नीचे ध्यानावस्थित बुद्धमूर्ति बुद्धधर्म का उपदेश तथा निर्माण, ये तीन घटनाएँ बौद्धकला में विशेष रूप से अंकित की जाती हैं, जोकि चिह्न यहाँ पर मौद हैं। दरअसल में ये बौद्ध भिक्षुओं के रहने की गुफाएँ है बौद्धमठों में विद्यार्थियों को जो हुन्नर, चित्र और शिल्पकला सिखलाई जाती थी, कलाकौशल बताने के लिये उस समय ऐसी ऐसी विशाल गुफाओं का बड़े बड़े पहाड़ी स्थानों में बनाने की प्रवृत्ति मौजद थी। पेसो प्राकृतिक स्वरूप गुफाएँ बनानेवाले विद्यार्थी श्रेष्ठतर समझे जाते थे । ऐसी कृतियों निर्माण करनेवाले की कदर अच्छे शिल्पियों में होती थी और उन्हें राज्य की ओर से वर्षासन भी मिलता था। भारत में बौद्ध भिक्षुओं की देख रेख में उनके विद्यार्थियोंने ऐसी ऐसी अनेक गुफाओं का निर्माण किया है जो उनकी अमर कीर्ति को आज भी बतला रही है । 1 यह तो ऊपर ही लिखा जा चुका है कि मालव प्रदेश में ईस्वी सन् की पांचवीं तथा छुट्टी शताब्दी में बौद्धधर्म का दौर दौरा था ठीक उसी समय में इन गुफाओं का निर्माण हुआ था। वहाँ के ताम्रपत्र के लेखानुसार माहिष्मती नगरी (ओंकार मान्धाता) के राजा सुबन्धु ने इन गुफाओं में स्थापित बौद्धमूर्तियों की पूजा के लिये और इनमें रहनेवाले For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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