Book Title: Jain Satyaprakash 1938 10 SrNo 39
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ पांच पाण्डवों की गुफाएं लेखक-आचार्य महाराज श्रीमद् विजययतीन्द्रसरिजी भारतीय संस्कृति में कला का स्थान उतना ही ऊँचा और महत्वपूर्ण रहा है जितना कि अध्यात्मविद्या एवं दर्शन का। इस संस्कृति की महानता का रहस्य भी यही है कि इसकी अनेक विद्याओं का अन्तिम उद्देश्य सत्यान्वेषण तथा आत्मविकास होता है। इन्हीं गुणों के कारण भारतीय संस्कृति आज तक जीवित है। जिस प्रकार भारतीय विद्वानोंने अपने अध्यात्मज्ञान के प्रकाश में उस सत्ता के दर्शन किये उसी प्रकार यहाँ के कलाकारों एवं शिल्पकारों ने अपने हृदय की प्रस्फुटित भावनाओं को ज्योति में उसी एक सत्ता के, उसी अनेकों में एक रूप, पक रंग, एक रस तथा उसी अक्षय सौन्दर्य के दर्शन किये । मानवहृदय की पिपासा को शान्त करने के लिये शिल्प अथवा कला का जन्म हुआ । भारतीय कला का कोई भी प्रमाण संदेश-शून्य अथवा निरर्थक नहीं कहा जा सकता । वह मूक नहों, वाङ्मय है । उसका सन्देश उसके भाल पर चित्रित रहता है। पाश्चात्य कला की भांति वह किसी वस्तु का निर्जीव प्रतिरूप नहीं है। भारतीय प्रान्तों में मालवा ही ऐसा प्रदेश माना जाता है जहाँ प्राचीन कला के कितने ही प्रमाण उपलब्ध होते हैं। मालव प्रदेश में अनेक प्राचीन राजवंशों का उत्थान और पतन हुआ, जहाँ पर उनकी निर्माणित कलाओं की स्मृति का ध्वंसावशेष, अब भी प्राचीनादर्श का ज्वलन्त उदाहरण विद्यमान है। भारतीय इतिहासकारों के मतानुसार मालव प्रदेश में पांचवीं तथा छठी शताब्दी में बौद्धधर्म का दौर-दौरा था । भेलसा के आस-पास सांची के स्तूप, उदयगिरि, बेसनगर आदि स्थानों के लेख बतला रहे हैं कि बौद्धकाल में राजपुरुष ही नहीं बल्कि बड़े बड़े धार्मिक, श्रीमन्त, सर्वसाधारण गृहस्थ और मजदूर तक भी उस धर्म के प्रचार हेतु यथाशक्ति दान दिया करते थे जिनका दान-प्राप्त द्रव्य मन्दिर, गुफाएँ आदि के निर्माण में व्यय किया जाता था । सातवीं शताब्दी में भारत में भ्रमण करनेवाले चीनीयात्री हुनसोंग ने लिखा है कि उसके समय में मालवे की गुफाएँ खाली पड़ी थीं जो पाण्डवों की गुफाओं के नाम से प्रसिद्ध थीं। जिन गुफाओं में बौद्धसाधु रहते थे। उन स्थानों में चीन, जापान, तिब्बत, मलाया आदि देशों के निवासी बौद्ध-धर्म का अध्ययन करने के लिये आया करते थे वे यहाँ साधुओं के समीप रहते और अपना जीवन साधुओंसा व्यतीत करते थे। इसी मालय प्रदेश में बो. बी. एन्ड सी. आई रेल्वे के महू स्टेशन से लगभग ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44