Book Title: Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Prastavana
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 7
________________ ( १५ ) जब तैयार हुआ तो इन तीनों पंडितों ने निर्णय किया कि हमें अलग हो जाना चाहिए । तदनुसार उनके सहयोग से हम वंचित ही रहे - इसका दुःख सबसे अधिक मुझे है । अलग होकर उन्होंने अपनी पृथक् योजना बनाई और यह आनन्द का विषय है कि उनकी योजना के अन्तर्गत पं० श्री कैलाशचन्द्र द्वारा लिखित 'जैन साहित्य का इतिहासः पूर्व पीठिका श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी से वीरनि० सं० २४८६ में प्रकाशित हुआ है । जैनों द्वारा लिखित साहित्य का जितना अधिक परिचय कराया जाय, अच्छा ही है । है कि विविध दृष्टिकोण से साहित्य की समीक्षा होगी । का स्वागत ही करते हैं । यह भी लाभ अतएव हम उस योजना अहमदाबाद में विद्वानों ने जिस योजना को अन्तिम रूप दिया तथा उस समय जो लेखक निश्चित हुए उनमें से कुछ ने जब अपना अंश लिखकर नहीं दिया तो उन देशों को दूसरे से लिखवाना पड़ा है किन्तु मूल योजना में परिवर्तन करना उचित नहीं समझा गया है । हम आशा करते हैं कि यथासंभव हम उस मूल योजना के अनुसार इतिहास का कार्य आगे बढायेंगे । 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' जो कई भागों में प्रकाशित होने जा रहा है, उसका यह प्रथम भाग है । जैन अंग ग्रन्थों का परिचय प्रस्तुत भाग में मुझे ही लिखना था किन्तु हृा यह कि पार्श्वनाथ विद्याश्रम ने पं० बेचरदासजी को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में जैन आगमों के विषय पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया । उन्होंने ये व्याख्यान विस्तृतरूप से गुजराती में लिखे भी थे । अतएव यह उचित समझा गया कि उन्हीं व्याख्यानों के आधार पर प्रस्तुत भाग के लिए अंग ग्रन्थों का परिचय हिन्दी में लिखा जाय । Astro मोहनलाल मेहता ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और इस प्रकार मेरा भार हलका हुआ । डा० मेहता का लिखा 'अंग ग्रन्थों का परिचय' प्रस्तुत भाग में मुद्रित है । श्री पं० बेचरदासजी का आगमों का अध्ययन गहरा है, उनकी छानबीन भी स्वतंत्र है और श्रागमों के विषय में लिखनेवालों में वे अग्रदूत ही हैं । उन्हीं के व्याख्यानों के आधार पर लिखा गया प्रस्तुत अंग-परिचय यदि विद्वानों को अंग आगम के अध्ययन के प्रति आकर्षित कर सकेगा तो योजक इस प्रयास को सफल मानेंगे | वैदिकधर्म और जैनधर्म : वैदिकध और जैनधर्मं की तुलना की जाय तो जैनधर्म का वह रूप जो इसके प्राचीन साहित्य से उपलब्ध होता है, वेद से उपलब्ध वैदिकधमं से अत्यधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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