Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
( १५ ) त्रयी हृदयसन्दोहसाररूपं सुखप्रदम् । सूत्रः पञ्चशतैर्युक्तं शताधिकरणैस्तथा ।। अष्टाध्यायसमायुक्तमति गूढं मनोहरम् । जगतामतिसंधानकारणं शुभदं नृणाम् ।। अनायासाद् व्योमयानस्वरूपज्ञानसाधनम् । वैमानिकाधिकरणं कथ्यतेऽस्मिन् यथामति ।। संग्रहाद् वैमानिकाधिकरणस्य यथाविधि ।
लिलेख बोधानन्दवृत्त्याख्यां व्याख्यां मनोहरम् ।।" अर्थात् अपने से पूर्व आचार्यों के शास्त्रों का पूर्णरूप से अध्ययन कर सबके हित और सौकर्य के लिये इस 'वैमानिक अधिकरण' को ८ अध्याय, १०० अधिकरण और ५०० सूत्रों में विभाजित किया गया है और व्याख्या श्लोकों में निबद्ध की है। आगे लिखते हैं :
"तस्मिन् चत्वारिंशतिकाधिकार सम्प्रदर्शितम् ।
नानाविमानवैचित्र्यरचनाक्रमबोधकम् ॥" भाव है : भरद्वाज ऋषि ने अति परिश्रम कर मनुष्यों के अभीष्ट फलप्रद ४० अधिकारों से युक्त 'यन्त्रसर्वस्व' ग्रंथ रचा और उसमें भिन्न-भिन्न विमानों की विचित्रता और रचना का बोध ८ अध्याय, ५०० सूत्रों द्वारा कराया । ___ इतना विशाल वैमानिक साहित्य ग्रंथ था जो लुप्त है और इस समय केवल बड़ौदा पुस्तकालय से एक लघु हस्तलिखित प्रतिलिपि केवल ५ सूत्रों की ही मिली है। शेष सूत्र न मालूम गुम हो गये या किसी दूसरे के हाथ लगे। हमारे एक मित्र एन० बी० गाने ने हमें ताऔर से एकबार लिखा था कि वहाँ एक निर्धन ब्राह्मण के पास इस विमान-शास्त्र के १५ सूत्र हैं, परन्तु हमें खेद है कि हम श्री गाने की प्रेरणा के होते हुए भी उन सूत्रों को मोल भी न ले सके। उसने नहीं दिये। कितनी शोचनीय कथा तथा अवस्था है।
इस प्राप्त लघु पुस्तिका में सबसे पहिले प्राचीन विभानसम्बन्धी २५ विज्ञानग्रंथों की सूची दी हुई है। जैसे :
शक्तिसूत्र-अगस्त्यकृत;सौदामिनीकला-ईश्वरकृत; अंशुमन्तंत्रम्-भरद्वाजकृत; यन्त्रसर्वस्व-भरद्वाजकृत; आकाशशास्त्रम् -भरद्वाजकृत; वाल्मीकिगणितंवाल्मीकिकृत इत्यादि।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org