Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 10
________________ किया तथा यह भी कहा कि 'पुष्पक विमान' के आविष्कारक महर्षि अगस्त्य थे। इस विषय में कुछ लेख पुनः विश्ववाणी में भी प्रकाशित हुए थे। प्राचीन भारत के लुन तथा अज्ञात साहित्य की खोज के लिए ब्रह्ममुनि जी ने निश्चय किया कि अगस्त्य-संहिता ढूँढी जाय । इसी खोज में वे बड़ौदा के राजकीय पुस्तकालय में पहुँचे। वहाँ उन्हें अगस्त्य-संहिता तो नहीं मिली पर महर्षि भरद्वाज के 'यंत्रसर्वस्व' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का बोधानन्द यति की वृत्तिसहित “वैमानिक-प्रकरण" अपूर्ण भाग प्राप्त हुआ। उस भाग की उन्होंने प्रतिलिपि की। उक्त पुस्तकालय में बोधानन्द वृत्तिकार के अपने हाथ की लिखी नहीं वरन् पश्चात् की प्रतिलिपि है। बोधानन्द ने बड़ी विद्वत्तापूर्ण श्लोकबद्ध वृत्ति लिखी है परंतु प्रतिलिपिकार ने लिखने में कुछ अशुद्धियाँ तथा त्रुटियाँ की हैं। ब्रह्ममुनि जी ने उसका हिन्दी में अनुवाद कर सन् १९४३ में छपवाया और लेखक को भी एक प्रति उपहारस्वरूप भेजी। चूंकि यह 'विमान-शास्त्र' एक अति वैज्ञानिक पुस्तिका थी अतः हमने इसे हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस में अपने एक परिचित प्राध्यापक के पास, इस ग्रन्थ में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों, कलाओं को अपने वैज्ञानिक शिल्पियों की सहायता लेकर कुछ नई खोज करने को भेजा। परन्तु हमारी एक वर्ष की लम्बी प्रतीक्षा के उपरान्त यह ग्रन्थ हमारे पास यह उपाधि देकर लौटा दिया गया कि इस पर परिश्रम करना व्यर्थ है। हमने इसे पुनः अलीगढ़ विश्वविद्यालय में भी छः मास के लिये विज्ञानकोविदों के पास रखा । पर उन्होंने भी कोई रुचि न दिखाई । इस प्रकार यह लुस साहित्य हमारे पास लगभग ९ वर्ष पड़ा रहा। १९५२ की ग्रीष्मऋतु में एक अंग्रेज विमानशास्त्री ( Aeronautic Engineer ) हमारे सम्पर्क में आये। उनका नाम है श्री हॉले (Wholey)। जब हमने उनके सन्मुख इस पुस्तिका का वर्णन किया तो उन्होंने बड़ी रुचि प्रकट की। सायं जब वह इस ग्रंथ के विषय में जानकारी करने आये तो अपने सार एक अन्य शिल्पी श्री वर्गीज को ले आये जो संस्कृत जानने का भी दावा रखते थे। चूँकि यह प्रतिलिपि किसी अर्वाचीन हस्तलिखित प्रतिलिपि की भी प्रतिलिपि थी अतः श्री वीज ने यह व्यंग किया कि “यह तो किसी आधुनिक पंडित ने आजकल के विमानों को देखकर श्लोक व सूत्रबद्ध कर दिया है इत्यादि ।" हमने कहा-श्रीमान् ! यदि इस तुच्छ ग्रन्थ में वह लिखा हो जो आप के आजकल के विमान भी न कर पायें तो आप की धारणा सर्वथा मिथ्या हो जायेगी। इस पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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