Book Title: Jain Ratnakar
Author(s): Keshrichand J Sethia
Publisher: Keshrichand J Sethia
View full book text
________________
-
जैन रत्नाकर
चत्तारि मंगलं चत्तारि मंगलं-अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलीपन्नचो धम्मो मंगलं । चत्वारि लोगुत्तमाअरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवली पन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो । चत्तारि सरणं पवज्जामि - अरिहंता सरणं पवज्जामि, सिद्धा सरणं पवज्जामि, साहू सरणं पवज्जामि, केवली पन्नत्तं धम्म सरणं पवज्जामि ।
ए च्यारूं शरणा सगा, और न सगो कोय । जे भवि प्राणी आदर, अक्षय अमर पद होय ॥
चउबीसत्थव
इरियावहियाए इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए, विराहणाए । गमणागमणे, पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग-पणग-दगमट्टी-मकड़ा संताणा संकमणे। जे मे जीवा विराहिया, एगिदिया, वेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया, अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया,

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137