Book Title: Jain Ratnakar
Author(s): Keshrichand J Sethia
Publisher: Keshrichand J Sethia

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Page 118
________________ जैन रत्नाकर सयाणीरे, स्वा० । दीपतीरे, मोरा० ॥ २१ ॥ मुणिन्द मोरा, शासन महासुखकार । अमर सुरी अधिष्टाय करे, स्वा० | दायकारे, मोरा० || २२ || मुणिन्द मोरा, दववन्ती जैयन्ती सार । अनुकूल बली इन्द्राणीरे, स्वा० । सहायकारे, मोरा० ॥ २३ ॥ मुणिन्द मोरा उगणीसे चउदे उदार । कार्तिक सुदि तिथि दशमीरे, स्वा० । गाइयोरे मोरा० ॥ २४ ॥ मुणिन्द मोरा, जय जश सम्पति सार । बीदासर सुख सातारे, स्वा० | पाइयोरे, मोरा० ॥ २५ ॥ १०८ दश दान की ढाल दोहा करन्त । दश दान भगवन्त भाषिया, सूत्र ठाणांग मांय | गुण निपन्न नाम है तेहना, भोलांने खबर न कांय ॥१॥ धर्म अधर्म दो मूल का प्रसिद्ध लोक में एह । आठ को अर्थ अन्धो करै, मिश्र धर्म कहै तेह ||२|| मिश्र धर्म परूपता, कूड़ो बाद आठ से अधर्म कयो, साम्भलज्यो दृष्टन्त ||३|| आम नीम के रूखनो, जुदो जुदो विस्तार । नीम निमोली तेल खल, नीम तणो परिवार ||४|| -हम हिज आठूं दान नो, अधर्म तणो परिवार । धर्म दान में मिले नहीं, श्रीजिन आज्ञा बार ॥५॥ इतरा में समझो नहीं, तो कहूँ भिन्न भिन्न भेद । विवरा सहित बताइयाँ, मत कोई करज्यो खेद ||६||

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