Book Title: Jain Ratnakar
Author(s): Keshrichand J Sethia
Publisher: Keshrichand J Sethia

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Page 116
________________ जैन रत्नाकर १०६ ॥ ७५ ॥ भव अनन्त भमत थक, किया कुटम्ब सम्बन्ध | त्रिविधे २ करी बोसरूं, तिस सूं प्रतिबन्ध | ते० ॥ ७६ ॥ भव errea rai थीं, किया काया सम्बन्ध । त्रिविधे त्रिविधे करी दोसखं तिण सूं प्रतिबन्ध | ते० ॥ ७७ ॥ भव अनन्त अथक, कीधो परिग्रह सम्बन्ध | त्रिविधे त्रिविधे करी बीसरू, तिण सूं प्रतिबन्ध | ते० ॥ ७८ ॥ इण भव पर भव, मैं किया, कीधा पाप अक्षत्र । त्रिविधे त्रिविधे करी बोसरू, करूं जन्म पवित्र | ते० ॥ ७७ ॥ हिवे राणी पद्मावती, शरण लिया चार । लागारी अणसण कियो, जाणपणारो सार । ते० ॥ ८० ॥ राग बेराड़ी जे सुण, ए त्रिजी ढाल | समयसुन्दर कहे पाप थी, भव तत्काल | ते० ॥ ८१ ॥ 1 मुनि गुण वर्णन की ढाल मुणिन्द मोरा, भिक्षुने भारीमाल । वीर गोयम री जोड़ीरे, लामी मोरा । अति भली रे, मोरा स्वाम ॥ १ ॥ मुणिन्द मोरा, आप सहि तथा गण में जाण । सुध संजम जाणोतोरे । स्वा० । हिदी सहीरे, मोरा० ॥ २ ॥ मुणिन्द मोरा, ठागा स्यूं रहिवारा पवखाण । वली अनन्त सिद्धांरी साखेरे, खा० । समसहीरे योरा ॥ ३ ॥ सुणिन्द मोरा, अवगुण बोलणरा त्याग । गणमें अथवा बाहिरदे, स्वा० । बिहुं तणेरे, सोरा० ॥ ४ ॥ मुणिन्द मोरा, सुनिवर जे महाभाग्य । एह मर्याद आराधेरे, स्वा० । हित घणोरे सोरा० ॥ ५ ॥ सुणिन् मोरा तीजे पट ऋषराय । खेतसीजी सुख

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