Book Title: Jain Ratnakar
Author(s): Keshrichand J Sethia
Publisher: Keshrichand J Sethia

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ १२२ जैन रत्नाकर ५२ विधवा स्त्री आदि को अपशकुन मानकर उनका दिल तो। नहीं दुखाया? .५३ विवाह, भोज आदि में परिग्रह की अतिभावना तो नहीं रक्खी ? नारी समाज (विशेष) १ आभरण आदि बनाने के लिये पति को वाध्य तो नहीं किया ? २ सास, ननद, जेठाणी देवरानी आदि पारिवारिक स्वजनों के __ साथ ईर्ष्या द्वेष व कलह तो नहीं किया ? ३ सौत, जेठाणी, ननद आदि दूसरों के बच्चों के साथ दुर्व्यववहार तो नहीं किया ? ४ किसी विधवा बहिन का अपशब्दों से अपमान व तिरस्कार तो नहीं किया ? ५ बनाव शृङ्गार व विषयवासनओं में शक्ति व समय का अप व्यय तो नहीं किया ? ६ शोरगुल झगड़ा एवं सावध बातें करके धर्म-स्थान एवं सार्व जनिक स्थानों की शान्ति, नियम एवं मर्यादा को भङ्ग तो नहीं किया ? ७ दिन भर में कौन-से अनुचित, अप्रिय एवं अवगुण पैदा करने वाले कार्य किये और कौन-सी सुशिक्षा ग्रहण की ? - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137