________________
जैन रत्नाकर नहीं जावै ॥१५॥ दुर्लभ लाधो मनुष्य जमारो, आर्य क्षेत्र सुकुल अवतारो। आण अखंडित सू आराधो, तो शिवरमणी ना सुख साधो॥१६॥ अङ्ग अश्व ग्रह चंद कहावे, भाद्र कृष्ण पञ्चम दरशा। श्री कालू करुणा सुपसायो, ऋषिराम आनन्द निधि आयो ॥१७॥ अल्प मात्र विस्तार ए कीधो, बुद्धिवन्त जाण लेवै बहू विधो । गंगापुर श्रावक गुण गाया, ढाल जोड़ो ए युक्ति लगाया ॥१॥ इति ॥
नित्यप्रति चितारने के १४ नियम १ सचित्त-माटी, पाणी अग्नि वनस्पति, फल, फूल, छाल्य
काष्ठ, मूल, पत्र, बीज त्वचा तथा अग्नि प्रमुख अनेरं शस्त्र लाग्यं न होय ते, इलायची, लौंग
बादाम इत्यादिक सचित्तनुं वजन धारवं । २ द्रव्य-धातु वस्तुनी शली तथा अपनी आंगुली के
सिवाय जो वस्तु मुख में दीजे सो सर्व द्रव्य की गिणती में आवै। नामान्तर, स्वादान्तर स्वरूपान्तर, परिणामान्तर, द्रव्यांतर होणेसे द्रव्यांतर