Book Title: Jain Ratnakar
Author(s): Keshrichand J Sethia
Publisher: Keshrichand J Sethia
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.. जैन रक्षाकर ।। गु॥ खोटी पुदगल पर्याय हो॥ गु॥ श्रा॥ उदय थयाँ दुःख नीपजै॥ ग ॥ वेदै चेतन रायहो । ग॥ श्रा॥ ॥ भावै ॥ २ ॥ प्रकृति अठवीसे करी ॥ ग॥ क्रोध मान माया लोभ हो ।। गु॥ चिहुँ २ भेदे संचरै ।। गु॥ पामै चेतन खोभ हो ॥ गु॥ श्रा॥ भावै ॥ ३ ॥ हास्य रतारत भय बलि ॥गु॥ शोग दुगंछा थाय हो । गु॥ श्रा।। स्त्री पुरुष नपुंसक तिहु॥ गु॥ मोह चारित कहिवायहो ॥ गु॥ श्रा॥ भावै॥ ४॥ दरशन मोह उदय थकी।गा। भिच्छत समकित जान हो ॥ गु॥श्रा॥ मिश्र मोहनी ए तिहुं । गु॥ दाबै निज गुण खान हो ॥ गु॥श्रा ।। ॥ भावै ।। ५ ।। असाता वेदनोदय ।। गु॥ भूख तृषादि पीडंत हो ।। गु॥ श्रा॥ लाभ भोगंतर क्षयोपशम्याँ ।।। भोग शक्ति पावंत हो ॥7॥ श्रा॥ भावै॥६॥ नाम उदय थी सहु मिलै । गु॥ गमता अणगमता भोग हो ॥ गु॥ श्रा॥ विविध प्रकारे भोग ।गु ॥ शरीरादि रोग्य आरोग्य हो । ग॥ श्रा ॥ भावै ॥ ७॥ पार अनन्त सुख दुःख सद्या ।। गु॥ भव भव भमियो जीव हो ।। गु॥ श्रा॥ स्वर्ग नरक फुन मनुष्य में ॥ गु॥

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