Book Title: Jain Ratnakar
Author(s): Keshrichand J Sethia
Publisher: Keshrichand J Sethia

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Page 45
________________ - जैन रत्नाकर . ३५ द्वारा प्राण हत्या हो या उसके जैसा भयङ्कर अनर्थ होता हो, वैसी झूठी साक्षी देने का त्याग करना । 8-द्वेषवश या लोभवश आग लगाने का त्याग करना। १०-परस्त्रो गमन का त्याग करना (अप्राकृतिक मैथुन का त्याग करना।) ११-वेश्या गमन का त्याग करना। १२-तमाखू अर्थात् धूम्रपान व नशे का त्याग करना। १३-रात्रि भोजन का त्याग करना (कमसे कम) आठम और चवदश का त्याग करना। -स्पष्टीकरण२- ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए आत्म-बल का परिचय देते हुए मृत्युपण अंगीकार करना अर्थात् प्राणों की बलि दे देना आत्महत्या नहीं है, लेकिन इसके लिए होनेवाले प्रहार और आक्रमण के भयसे मरजाना आत्महत्या है जिसका त्याग करना न करना अपनी इच्छाके अधीन है। ३---संकल्प-पूर्वक जान-बूझकर मारनेका त्याग करना । - हिंसा के मुख्य तीन प्रकार हैं:१-आरम्भी-कृषिवाणिज्य आदि उपायों से होने वाली हिसा । २--विरोधि-विरोधियों के प्रति की जाने वाली हिंसा । ३-संकल्पी-विना प्रयोजन की जाने वाली हिसा। उपर्युक्त नियमों में सिर्फ संकल्पी हिसा का त्याग कराया जाता है। ६-चडी चोरी का अर्थ है ताले तोड़ कर डाका डाल कर लूट खसोट कर जेबें काटकर आदि ऐसे साधनों द्वारा दूसरों की वस्तुओं का हरण करना जिसे प्रत्यक्ष में चोरी कहा जा सके। १२-तमाखू पीना खाना सूंघना आदि सब इसके अन्तर्गत है भांग, गांजा, सुलफा अफीम आदि नशीली वस्तुओं का त्याग भी इसके.अन्तर्गत है।

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