Book Title: Jain Ras Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandra Maharaj
Publisher: Gokaldas Mangaldas Shah
View full book text
________________
आचार्य श्री भ्रातृचंद्रसूरिग्रन्थमाला पुस्तक - ३६० वाचकवरश्रीहर्ष चंद्रानुजमुनिवरश्रीनिहाल चंद्रकृतः
॥ जगतशेठाणी श्रीमाणकदेवी - रासः ॥
संशोधक - जैनाचार्यश्री भ्रातृचंद्रसूरिशिष्यमुनिसागरचंद्रः
श्रीदानशीलतपभावनाधिकारे- बंगालदेशोत्पन्ना जगतशेठाणी सतीशिरोमणी श्रीमाणेकदेवीरासः प्रारंभ:
SC
( ढाल - मोघं मुज मन तुम गुणे, श्रीशांतिनाथ० पदेशी. ) श्रीगुरु गौतम पयनमी, सारदमात मनाबुंरे । जेथकी बुद्धि ऊपजे, गुणपुण्यवंतना गाउँरे ॥ १ ॥ पुन्यवंत नर साभलो, निरमल सतीय चरित्रोरे । पापपंकज जिंह तें मिटे, होवे श्रवण पवित्रोरे / पुन्य० आंकणी० ॥ २॥ श्रीमुख श्री जिन भाखीया, धर्मना चार प्रकारोरे । जे प्राणी नित आदरे, ते पावे अवपारोरे / पुन्य० ॥३॥ सतजुग सोलसती हुइ, साधवी साधु rait | कलिजुग में मोटी सती, माणीकदे सुविवेकोरे पुन्य० १० || ४ || जो पेजप करणी करी, व्रत कीधा पचखाणोरे तेनी कुण गिणती करे, गिणत न आवे ज्ञानोरे / पुन्य० ॥५॥ तासतणा गुणगाववा, मनमें हुवो उच्छाहोरे । कहतां जीभ
1

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252