Book Title: Jain Ras Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandra Maharaj
Publisher: Gokaldas Mangaldas Shah

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Page 208
________________ -. १८१ भद्र, महभद्र, वहे यतीसर, च्यारि पहर काओसग करेंए; पूरव दक्षिण देह, पश्चिम उत्तर, चिहु दिशि जाम चउ ओढ धरेंए । लहुभद्र दो अहोराति, महभद्र चउदिन, चिहुं पासें ऊरध रहे ए; आठ पहर एक पास, इम चउ वासर, छठ दसम करि निरवहे ए ॥१०७॥ सर्वतभद्र दसदीह, दस दिशि काउसग, बावीसम करि पालिये ए; अथवा लघु मह भेद, दिण पण'इत्तरि । भक्त पान लहु टालिये ए । दिण पंचवीस आहार, “पांचे ओलीए, एवं चउगुण लघु गणोंए । एक सो छन्नू दीह, तपदिन पारणा, एगुणपन्नासही जाणो ए॥१०८॥ एकथी सत्त लगी सीम, सातय पंतीये, एहवी चोगुण मुनि करें ए; महभद्र प्रतिमा तेय, तप दिन छन्नूय, एकसो अधिक ते मन धरें ए । ओगुणपन्ना दीह, पारण सह मिली, आठमास पंच वासराए; एटले ओली एक, एह चतुर्गुणी, मास बत्रीस वीस दिन खरा ए ॥१०९॥ तप अंबिल वर्धमान, चउथ प्रथम करी, पारण आंबिल इम हुवें ए: चउथ अंबिल वळी दोई चउथ ति अंबिल, जां सत आंबिल संभवे ए। एकसो तिह उपवास, अंबिल पंच सहस, एहवा तपिया दीयें ए; भिख्खूप्रतिमा बार, श्रुत विधि जे वहे, तसु नामें दुह छंदियें ए॥ ११० ॥ पहिली एकज. मास, दूजी दो त्रीजी, त्रिणि जाव सत्त मासिया ए। मास इक इक दाति, अन्न पान तणी, एवं सत्त सत्त भासिया ए । अट्ठमी सत्त अहोराति, तप चउथ करें, पान रहित बाहिर रहें ए। चिता सूए एक पासि, अथवा

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