Book Title: Jain Ras Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandra Maharaj
Publisher: Gokaldas Mangaldas Shah
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वृषभ धोरी संजुआ || शृंग वृत्ताकार जेहना सुवन खोलि जड्या सही । घूघरा घंटा कमल कंठें, राशि पट सूत्रह कही || ३५२ ।। सुभट सनाह ते पहिरिया, आयुध लीधां हाथें । देहे भूषण धारीया, चालें राजा साथे ॥ - सार्थे चालें भरिय बाणे, पूठे भीडी भाथडी । वाम हार्थे धरीय खांडों, दाहिणे कर भालडी || अंगना रखवाल एहवा, स्वामिना भगता अछे । मल्ल कच्छकरी पधारें, आगल पाखल केई पछे ॥ ३५३ ॥
दूहा:
चडव्विह सैन सिंगार करि, जिणवर वंदण काज़ | श्रीसमरचंद्र कहे जाणज्यो, ए मिश्र पक्ष जिनराज || ३५४ ॥ ( ढाल - जंबू स्वामिना रासनी चालती तथा त्रूटकनी देशीमां०) हस्तिवादक एमकरी आवी कहें, बलवादकने देखी गह गहें । कोटवाल तेडी नयरि समरावए, जह ओत्तर कारी करीनें आए || - आवए बलवादक समिपें, आव आणा सउपए | हरखे बलवादको आवी, कूणिकराय समीपए ॥ कहें तुझ आदेस कीधो, सेना नगरी सज करी । पधारो बंदवा जिणवर, महावीर गुण मन धरी ।। ३५५ || कूणीक राजा तसु वचनं सुणी, मनमाहि हरख्या भगति आणी घणी । स्नानादिक करि भूषण पहिरिया, कांने कुंडल सिरे मुगट ति धारिया ॥ - धारिया हृदयें हार आदें, बांहि बहिरख अति भला । अंगुलें मुद्रा रतन कडियें, कणदोरा ते सांभ -

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