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भगवान महावीर ने कहा है-हे मानव ! तू दूसरे जीवों की आत्मा को भी अपनी ही आत्सा के समान समझकर हिंसा कार्य में प्रवृत्त न हो... । हे पुरुष ! जिसे तू मारने की इच्छा करता है, विचार कर, वह तेरे जैसा ही सुख-दुःख का अनुभव करने वाला प्राणी है । जो हिंसा करता है, उसका फल बाद में वैसा ही भोगना पड़ता है। अतः मनुष्य किसी भी प्राणी की हिंसा करने की कामना न करे ।
इसी प्रकार सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह- महावतों, यमों की तीन करण व तीन योग- मन, वचन और काय से पालना करनी चाहिये । निर्जरा के बारह भेद- अष्टांग योग
भगवान् महावीर ने कहा है- जिस प्रकार जल आने के मार्ग को रोक देने पर बड़ा तालाब पानी के उलीचे जाने और सूर्य के ताप से क्रमशः सूख जाता है, उसी प्रकार आम्रर- पाप कर्म के प्रवेश-मार्गों को रोक देने वाले संयमी पुरुष के करोड़ों जन्मों के संचित वर्म तप के द्वारा जीर्ण होकर झड़ जाते हैं।" निर्जरा-तप के बारह" (छह बहिरंग और छह अभ्यन्तर) अंग है--.
१. अनशन--उपवास-आदि तप २. ऊनोदरी-कम खाना, मिताहार ३. भिक्षाचरी-जीवन-निर्वाह के साधनों का संयम ४. रस-परित्याग-सरस आहार का परित्याग ५. कायक्लेश-आसनादि क्रियाएं ६. प्रतिसलीनता---इन्द्रियों को विपयों से हटाकर अन्तर्मुखी करना ७. प्रायश्चित्त-पूर्व भव कृत दांप विशुद्ध करना। ८. विनय-नम्रता ६. वयावृत्य-- साधकों को सहयोग देना १०. स्वाध्याय--पठन-पाठन ११. ध्यान-चित्तवृत्तियों को स्थिर करना ।
१२. व्युत्सर्ग-शरीर की प्रवृत्ति को रोकना । अष्टांग योग
महषि पतञ्जलि ने लिखा है-"योग के अंगों का अनुष्ठान करने से-आचरण करने में अदि का नाश होने पर ज्ञान का प्रकाश विवेकख्याति तक प्राप्त हो जाता के योग-दर्शन में योग के आठ अंग माने गए हैं :
पम- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-ये पांच यम हैं।" नियम-शौच, सन्तोप, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान-ये पांच नियम है।" भासन-निश्चल-हलन-चलन से रहित सुखपूर्वक बैटने का नाम आसन है। प्राणायाम-श्वास और प्रश्वास की गति का रुक जाना प्राणायाम है। प्रत्याहार---अपने विषयों के सम्बन्ध से रहित होने पर इन्द्रियों का चित्त के स्वरूप
तुलसी प्रमा