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है । शरार, शील, स्वभाव - ये सका है।
शरो र नाम कर्म- 'जिसके उदय से आत्मा के शरीर की रचना होती है, वह शरीर नामकर्म है । २ ‘जिस कर्म के उदय से वाहारवर्गणा के पुद्गल-स्कन्ध तथा तेजस और कामण वर्गणा के पुद्गल-स्कंध शरीर योग्य परिणामों के द्वारा परिणत होते हुए जीव के साथ सद्ध होते हैं, उस कर्म-स्कन्ध को 'शरीर' यह संशा है ।
शरीर नाम कर्म के भेद- जो शरीर नाम है, वह पांच प्रकार का है - (१) बौधारिक शरार नाम कर्म, (२) वकियिक शरीर नामकर्म, (३) वा हारक शरीर नामकर्म, (४) तस शरार नामकर्म और (५) कार्मण शरीर नाम-कर्म ।४
औदारिक शरीर- ‘जो शरीर गर्भ जन्म से और संमुच्छन जन्म से उत्पन्न होता है, वह सब बौदारिक शरीर है । "
१ - धवला.- १४।५, ६, ५१२॥ ४३४: अणंताणत पोग्गल समवाओं सरो । २- (क) सवधिसिद्धि, ८।११।३८६।६:
__-यदुदयात्मनः शरीरनितिस्तच्छरी नाम ।
(ख) राजवार्तिक, ८।११।३।५७६ ॥ १४ । ३ - धवला, ६।१, ६-१, २८१५२।६ । ४- (क) पट्खण्डागम, ६६१, ६-१।सु० ३१।६८: जं तं सरी रणामकर्म तं पंचविहं
धोराल्यि सरोरणाम, वेउव्वियसरारणाम, वाहार सरी रणामं तेयासरा रणाम कम्य सरोरणामं चेदि ।।३१।। (स)-तत्त्वार्थ सु०, बोदारिक वकियिकाहारक तजसका मणानि शरो राणि ।
।। २३६ ।। (ग) ठाण, ५२५ (घ) समवायो प्रकोणक, १५८ । ५ - सर्वार्थसिद्धि, २१४५। १६७।१: यद् गर्भनं यच्च संमुनि तत्सर्वमौदारिक दृष्टव्यम् ।