________________
जोन का गर्भ-प्रवेश- श्रीमद् भागवत् में कहा है- 'जीव प्रारब्ध-कर्मवश देह-माप्ति के लिए पुरुष के वीर्य कण के बाश्रित होकर स्त्री के उदर में प्रविष्ट होता । १ आयुर्वेद के विभिन्न ग्रन्थों के वाधार पर जीव के पूर्व +मों के अनुसार गर्भ-मृवेश का वर्णन स प्रकार उपलब्ध होता है- 'यह आत्मा जैसे शुभ-अशुभ कर्म पूर्व जन्म में संचित करता है,उन्हों के वाधार पर इसका पुनर्जन्म होता है और पूर्व देह में संस्कारित गुणों का प्रादुर्भाव इस जन्म में होता है। गीता के ठे अध्याय में योगिराज कृष्ण ने इस बात की पुष्टि की है
__ तत्र तं बुद्धि संयोग लमते पौर्वदेहिकम् ।
इसी कारण इस संसार में हम किसी को सुन्दर, किसी को कु-प, किसी को लुला, किसी को लंगड़ा, किसी को अंधा, किसी को काना देखते हैं । इसी प्रकार को जाय किसी महापुरुष के पर जन्म लेता है तो कोई किसी अधम के घर उत्पन्न होता है । कोई ऐश्वर्यशाली के घर जन्मता है तो कोई अकिंचन कुटीर में पलता है । यह विविधता पूर्वकृत कर्म से होती है जिसे कि देव के नाम से कहा जाता है -
'पुर्वजन्मकृतं कर्म तवमिति कथ्यते ।'
वात्स्यायन के अनुसार पुर्वकृत कर्म के फल से नए शरीर का निर्माण होता न दर्शन में कनिमित्त शरार-निर्माण को प्रति-पति मान्य है । गौतम ने पुक्षा मंत । जो प्राणी भाले जन्म में उत्पन्न होने वाला है, क्या वह सायुष्क संक्रमण करता है या निरायुष्क?
१- श्री मद्भागवत, ३।३१।१: ग० पु० सा०, ६५: कर्मणा देवनेत्रण अन्तर्देहो
पच्ये । स्त्रियाः प्रविष्ट उदरं पुंसो रेत: कणाश्रयः ।। २- सुतुत, शा० २।२५: कर्मणा चोदितो येन यदाप्नोति पुनवे ।
अभ्यस्ता: पूर्वदेहे ये तानेव पणते गुणान् । ३. न्याय दर्शन वात्स्यायन भाष्य ३॥रा५६-६०, पृ० २६३