Book Title: Jain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Author(s): Ratnalal Jain
Publisher: Ratnalal Jain

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Page 159
________________ 77 ५. संज्वलन- जलन या ईर्ष्या की भावना। ६. कलह- अनुचित भाषण करना। ७. चांडिक्य- उग्र रूप धारण करना। ८. भंडन- हाथापाई करने पर उतारू होना ९. विवाद- आक्षेपात्मक भाषण करना दोष- स्वयं या दूसरे पर दोष थोपना। मान जैन-जगत् में मान के अष्ठ भेद है-इन्हें आठ मर भी कहा जाता है- .. १. जाति, २. कुल, ३. बल (शक्ति), ४.ऐश्वर्य, ५. बुद्धि, ६. शान (सूत्रों का ज्ञान), ७. सौन्दर्य व८.. अधिकार मान के निम्नलिखित पर्यायवाची है-८ १. मान- अपने किसी गुण पर अहंवृत्ति। २. मद- अहंभाव में तनमयता । ३. दर्प- उत्तेजनापूर्ण अहं भाव । ४. स्तंभ- अविनग्रता । ५. आत्मोकर्ष- अपने को दूसरे से श्रेष्ठ मानना । ६. गर्व- अहंकार । ७. परपरिवाद - परनिन्दा । ८. उत्कर्ष- अपना ऐश्वर्य प्रकट करना। ९. अपकर्ष- दूसरों को तुच्छ समझना । १०. उन्नत- दूसरों को छोटा मानना । ११. उन्नाम- गुणों के सामने न झुकना । १२. पुनाम- यथोवित रूप से न झुकना

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