Book Title: Jain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Author(s): Ratnalal Jain
Publisher: Ratnalal Jain

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Page 133
________________ 64. गर्भस्थ जीव पर बाह्य वातावरण का प्रभाव-- गर्भस्थ जोव पर बास्य वातावरण का बहुत प्रभाव पद्धता है । यदि गर्भ में ही जी व मृत्यु अस्था को प्राप्त कर ले तो वाह्य वातावरण के अनुसार उत्पन्न विचारों के आधार पर ही स्वर्ग और नरक की प्राप्ति करता है । भगवती सुत्र में यह प्रसंग पंत रोचक और मननो य है । कोई गर्भवासी जीव जो संशी और पर्याप्त हो जाता है, उस समय किसी शत्रु की सेना का शब्द सुनकर वह पकिय शरीर को विसुर्वणा करके अने आत्म-प्रदेशों को बाहर निकालता है और चतुरंगिणी सेना बनाकर शत्रु की सेना के साथ संगाम करता है । उस समय उसमें राज्य: मोग तथा धन की इच्छा जागृत हो जाती है । उन परिणामों में वह वायुष्य पूर्ण करे तो नरक में जाता है । १ यह केवल कात्पनिक तथ्य नहीं है । महाभारत में भी एक प्रश्न मिलता है कि अभिमन्यु ने गर्भ में हा चक्रव्यूह भेदन की विथा सीख ली थी । माता को नाद आने से वह विधा अधूरी हो सो खो गया । इसी प्रकार संशी पचेन्द्रिय और पर्याप्तियां पूर्ण करने के पश्चात् वैक्यि-लव्धि और अवधिज्ञान के दारा किसी श्रमण से धार्मिक प्रवचन सुनकर वह उस पर श्रद्धा कर लेता है, तथा गर्भ में ही उसके स्वर्ग और मोत की इच्छा जागृत हो जाती है । कल्पसूत्र में भी महावो र के जीवन-प्रसंग में वर्ण, वाता है कि महावा र माता के कष्ट की कल्पना करके गमावस्था में निश्चल, निस्पन्द, शांत और स्थिर हो गए । ३ गर्म का हलन-चलन न देखकर त्रिशला दुःखा होकर आध्यान करने लगी । यह देखकर महावीर ने पुनः हलन-चलन प्रारम्भ कर दिया और उसी समय संकल्प लिया कि जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे तब तक प्रवृज्या गहण नहीं करूंगा । १- मावती सूत्र, ३५३-५४ २- वही , २५५-५६ ३-. कल्पसूत्र, ८७, तर ण समणे भगवं महावी रे मा उवणुकंपणट्ठाए निच्चले

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