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दोनों की मात्रा समान होने से नपुंसक तथा वायु विकार से औज के जम जाने पर विम्ब (मांसपिण्ड) पैदा होता है । जैसे- मालोढ़ा । मनुस्मृति,२ चरकसंहिता, २ अष्टा इ. गहृदय तथा सुश्रुत में भी इसी मत की पुष्टि की गयी है। मनुस्मृति में इसका एक कारण और बताया है कि स्त्री के मासिक धर्म के बाद समरात्रियों में सम्भोग होने से पुत्र तथा विषम में पुत्री पैदा होती है। । मोज ने इसका वैज्ञानिक कारण बताते हुए कहा है कि मासिक धर्म के सम दिनों में रज काम होता तथा विषम दिनों में उसकी वृद्धि हो जाती है इसलिए सम दिनों में संयोग से पुत्र तथा विषम दिनों में कन्या को उत्पचि होती है ।
संदुलवैचारिक प्रकोण में स्थान के आधार पर भी इस विषय में विचार किया है । दाहिनी क्षि में उत्पन्न होने वाला गर्भ पुरुषप में, बायो में बसने वाला जीव स्त्री तथा कुक्षि के मध्य भाग में रहने वाला नपुंसक होता है । इसी बात का सुश्रुत में विस्तार से पणन मिलता । पाश्चात्य विनों ने मा कहा है कि स्त्री के जोश के दाहिने माग में ऐसे पदाधों की स्थिति रहती :: जिसमें पुत्र उत्पन्न करने का शक्ति होता है तथा बारंभाग में केन्या उत्पन्न करने का शॉक वाला पदार्थ रहता है । १० आधुनिका वैज्ञानिकों के आधार पर भी मृण के लिंग का निर्माण पिता के शक पर आधारित है | Y को मोसोम से पुत्र तथा x को मोसोन से लड़की पैदा होती है। माता के रण में केवल x को मोसोम होता है तथा पिता के शुभ में x और Y दोनों होते हैं । जब माता के x तथा पिता
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१- तंदुलवचारिक प्रकी णक- २२-२३ २- मनु०, ३।४६ ३- चरकसंहिता, २।११ ४- अष्टाइगहृदय, ११५-६ ५- सुश्रुत, ३।१० ----
६- मनुस्मृति, ३।८ ७- सुभुत, ३।१०, पृ० २१ ८- तंदुलवचारिक प्रकोणक, १६ ६- सुश्रुत, ३।३२, पृ०२७ . १०- हिन्दी शब्दसागर, पृ० १२४४