________________
शरी र-संरचना-बाधुनिक शरीर-विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में
----
शरीर का महत्त्व-
भावान् महावीर ने कहा है
शरीर माहु नावति जीवो वुच्चा नावियो ।
___ संसारो वण्णवो वुचो तरंति महेसिणो ।। - 'वायुष्मान् ! इस संसार •प सागर के दूसरे पार जाने के लिए यह शरीर नौका है, जिसमें बैठकर वात्मा पी नाविक समुद्र पार करता है।' संस्कृत-साहित्य की प्रसिद्ध सुफि है- 'शरा रमाथं खलु धर्म-साधनम्'- अर्थात् शरीर ही निश्चित रूप से धर्म का साधन है । शरीर का लाण- जो उत्पत्ति के समय से लेकर प्रतिमाण जीण-शोण होता. रहता है, जिसके द्वारा मोतिक सुख-दुःख का अनुभव होता रहता है तथा जो शरीर नामकर्म के उदय से उत्पन्न होता है, उसे शरीर कहते हैं। जिस कर्म के उदय से वाहार वर्गणा के पुद्गल स्कन्ध तथा तेब्स और कार्मण वर्गणा के पुदालस्कन्ध शरीर-योग्य परिणामों के द्वारा परिणत होते हुए जीव के साथ सम्बद्ध होते हैं, उस कर्म-कन्ध की ‘शरीर' यह संशा है । जो विशेष नाप-कर्म के उदय से गलते हैं, वे शरीर है। अनन्तानन्त पुदगलों के समवाय का नाम शरीर
१- मोल-काश, धनमुनि । २- धवला, ६१, ६-१, २८१५२१६: - नम्स कम्मरस उदरण वाहार वग्गणार पोग्गल-संधा तेजा मय बग्गण
पोग्गलखंथा च सरी जोग्ग परिणामेहि परिणा संतापी वेण संति हा सस्स कम्मलंधस्स सरी रमिपि सण्णा ।। - माय सिदि, ।३६।१८१।४:। -विशिष्ट नामकर्मोदयापादि वृत्ती नि ASY शो मन्ते इति शरीराणि ।।
128
...
H
AT-1550
-ttantra