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राजा मिलिन्द और स्थविर नागरीन के बाच हुए संवाद में जीवों की विविधता, विभिन्नता का कारण कर्म ही माना है -- 10
राजा मिलिन्द ने स्थविर नागसेन से पूछा--"
"भन्ते ! क्या कारण है कि सभी मनुष्य समान दीर्घ आय वाला; कोई अधिक रोगी तो कोई निरोगी; प्रभावहीन कोई प्रभावशाली ;' कोई अल्पभोगी - निर्धन, बाल), कोई ऊँचे कुल वाला तथा कोई मुर्ख व कोई विद्वान क्यों होते हैं ?"
नहीं होते — कोई अल्प आयु वाला, कोई कोई कुरुप तो कोई अति सुन्दर; कोई कोई बहु भोगी- धनवान, कोई नीच कुल
स्थविर नागसेन ने प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा-
राजन ! क्या कारण है कि सभी वनस्पति एक जैसी नहीं होती - कोई खट्टी, कोई मीटी कोई नमकीन कोई तीखी, कोई कड़वी, कोई कमेली क्यों होती है ?'
राजा मिलिन्द ने कहा
'मैं समझता है कि बीजों के भिन्न-भिन्न होने के कारण ही वनस्पति भी भिन्न-भिन्न होती है ।'
नागमेन ने कहा- 'राजन जीवों की विविधता का कारण भी अनका अपना कर्म ही होता है । सभी जीव अपने-अपने कर्मों के फल भोगते हैं। सभी जीव अपने कर्मों के अनुसार ही नाना गतियों और योनियों में उत्पन्न होते हैं ।'
वैदिक दर्शन-
मनुस्मृति में लिखा है कि कर्म के कारण हो मनुष्य को उत्तम, मध्यम या अधम गति प्राप्त होती है
'मन, वचन और शरीर के शुभ या अशुभ कर्म फल के कारण मनुष्य की उत्तम, मध्यम या अधम गति होती है ।" "
उन्होंने आगे कहा है- 'शुभ कर्मों के योग से प्राणी देव योनि को प्राप्त होता है । मिश्र कर्मयोग से वह मनुष्य योनि में जन्मता है और अशुभ कर्मों के कारण वह तिर्यच-पशुपक्षी आदि योनि में उत्पन्न होता है । 13
विष्णु पुराण में कहा गया है- 'हे राजन् यह आत्मा न तो देव है, न मनुष्य है, और न पशु है, न ही वृक्ष है-ये भेद तो कर्म जन्य शरीर-कृतियों का है 1'24 शारीरिक मनोविज्ञान और नाम कर्म
शारीरिक मनोविज्ञान पत्थिवाद आज के शरीर शास्त्रियों ने शरीर में अवस्थित ग्रन्थियों" के विषय में बहुत सूक्ष्म विश्लेषण किया है। बोना होना या लम्बा होना, सुन्दर या
वर्ष - 2, अंक-2, मार्च - 90