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करके नोट्स भी उतारे थे। तभी से बहुतों की यह इच्छा रही कि यदि यह विषय पुस्तक रूप में छपकर तैयार हो जावे तो बाल गोपाल इससे लाभान्वित हो सकेंगे । जैन भौगोलिक तत्त्वों को सरलता पूर्वक समझ सकेंगे ।
अतः सभी की भावना एवं आग्रह को लक्ष्य में रखकर मैंने उन्हीं नोट्स के आधार पर यह पुस्तक लिखकर तैयार की है । संभवतः इसमें कई त्रुटियाँ भी रह गई होंगी । अतः पाठकगण सुधार कर पढ़ें और सत्यता का स्वयं निर्णय करें ।
पूज्य माताजी ने अस्वस्थ अवस्था होते हुए भी अथक परिश्रम करके, अमूल्य समय देकर जो नोट्स लिखवाये थे उसी के आधार पर से बहुत से ग्रन्थों के साररूप यह छोटी सी पुस्तक तैयार की गई है। अतः हम माताजी के अत्यन्त आभारी हैं ।
विशेष :--- पूज्य माताजी कई स्थानों पर उपदेश के अन्तर्गत अकृत्रिम चैत्यालयों को रचना को लेकर त्रिलोक रचना में जैन भूगोल के आधार पर मध्य लोक में पृथ्वी कितनी बड़ी है ? छह खण्ड की रचना कैसी है ? उसमें आर्य खण्ड कितना बड़ा है ? उसकी व्यवस्था कैसी क्या है ? सुमेरु पर्वत आदि कहाँ किस रूप में है ? इत्यादि विषय पर बहुत ही रोचक ढंग से प्रकाश डालती रहती हैं ।
जब आप अपने संघ सहित शोलापुर चातुर्मास के उपरांत यात्रा करती हुई श्रीसिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट दर्शनार्थं पधारी तब सनावद निवासियों के आग्रह पर सन् १९६७ का चातुर्मास वहीं स्थापित किया । तब वहाँ पर भी उपदेश के अन्तर्गत बहुत