Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 3
________________ Mera Chan जैनहितैषी । श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात्सर्वज्ञनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ १० वाँ भाग ] श्रावण, श्री वी० नि०सं० २४४० । [ १० वाँ अं० गत - गौरवकी स्मृति । ( १ ) भ्रातृगण, अपनी अवस्थाकी कथा सुन लीजिए, प्रियवरो, इस ओर भी कुछ ध्यान अपना दीजिए । शोकसे हो व्यग्र यद्यपि कुछ कहा जाता नहीं, किन्तु कहने के बिना भी तो रहा जाता नहीं । (२) थी हमारी क्या दशा, अब हीनता कैसी हुई, न्यूनता, संकीर्णता, धनक्षीणता कैसी हुई। एक दिन हमसे सुशोभित थी अहा ! सारी मही, शोक ! अब गिनंती हमारी उँगलियों पर हो रही ॥ (३) पूर्वके सब तेज, वैभव उठ गये हा सर्वथा, रह गई अब सिर्फ ग्रंथों में लिखी उनकी कथा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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