Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 4
________________ १९४ बुकर टी० वाशिंगटनका जन्म सन् १८५२--५८ में इसी नीग्रो जातिके एक अत्यन्त गरीब दासकुलमें हुआ। जिस समय अमेरिकाके सब दास मुक्त किये गये उस समय उसकी अवस्था तीन चार वर्षकी थी। स्वतंत्र होनेपर उसके मातापिता अपने बच्चेको लेकर कुछ दूर माल्डन नामक गाँवको, नमककी खानमें मजदूरी करनेके लिए, चले गये। वहाँ बुकरको भी दिनभर खानके भीतर नमककी भट्टीमें काम करना पड़ता था। यद्यपि बालक बुकरके मनमें लिखना पढ़ना सीखनेकी बहुत इच्छा थी, तथापि उसके पिताका ध्यान केवल कुटम्बके निर्वाहके लिए पैसा कमानेहीकी ओर था। ऐसी अवस्थामें शिक्षाप्राप्तिकी अनुकूलता नहीं हो सकती । इतनेमें उस गाँवके समीप ही नीग्रो जातिकी शिक्षाके लिए एक छोटीसी पाठशाला खोली गई। इस पाठशालामें वह रातको जोकर पढ़ने लगा। मजदूरीके कष्टप्रद जीवनमें भी वह अपनी ज्ञान बढानेकी इच्छाको चरितार्थ करने लगा। सन् १८७२ में, वह हैम्पटन नगरके नार्मल स्कूलमें पढ़नेके लिए गया। बिना पैसेके अत्यन्त कष्ट सहन करके मजदूरी करते हुए उसने हैम्पटनकी ५०० मीलकी लम्बी सफर तै की। स्कूलके अध्यक्ष बड़े ही परोपकारी थे। उनकी कृपासे बुकर चार वर्षमें प्रेजुएट होगया। इस स्कूलमें वाशिंगटनने जिन बातोंकी शिक्षा पाई उनका सारांश यह है: १ “पुस्तकोंके द्वारा प्राप्त होनेवाली शिक्षासे वह शिक्षा अधिक उपयोगी और मूल्यवान् है जो सत्पुरुषोंके समागमसे मिलती २-“शिक्षाका अन्तिम हेतु परोपकार ही है। मनुष्यकी उन्नति केवल मानसिक शिक्षासे नहीं होती। शारीरिक श्रमकी भी बहुत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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