Book Title: Jain Divakar Smruti Granth Author(s): Kevalmuni Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar View full book textPage 8
________________ সক্রাSI0ীত तीन वर्ष पूर्व जब श्री जैन दिवाकर जन्म शताब्दी वर्ष के आयोजनों का कार्यक्रम बन रहा था, गुरुदेवश्री के भक्तों के मन में एक उत्साह व उमंग की लहर दौड़ रही थी। अनेक कल्पनाएँ व अनेक कार्यक्रम व सपने आ रहे थे । समारोह को सफलतापूर्वक तथा सुनियोजित तरीके से मनाने के लिए एक महासमिति का भी गठन किया। जिसका नाम था-श्री जैन दिवाकर जन्म शताब्दी समारोह महासमिति । . इस समिति में समाज के अनेक गणमान्य, उत्साही कार्यकर्ता, सेवा-भावी तथा दानी-मानी सज्जन सम्मिलित थे । सभी ने उत्साहपूर्वक समारोह मनाने का संकल्प लिया और इस महान् कार्य में जुट गये। इन दो वर्षों में, इन्दौर, रतलाम, जावरा, मन्दसौर, चित्तौड़, कोटा, ब्यावर, जोधपुर, उदयपुर, निम्बाहेडा, नीमच, चित्तौड, देहली आदि प्रमुख नगरों में तथा सैकड़ों छोटे-छोटे गांवों में भी बड़े उत्साहपूर्वक अनेक आयोजन हुए, कार्यक्रम हुए । अनेक स्थानों पर गुरुदेवश्री जैन दिवाकर जी महाराज की स्मृति में, विद्यालय, चिकित्सालय, वाचनालय, साधर्मी-सहायता फंड आदि जनसेवा के महत्त्वपूर्ण कार्यों का प्रारम्भ हुआ, लोगों ने तन-मन-धन से कार्य भी किये और उन्मुक्त मन से सहयोग भी किया। प्रायः समूचे भारत के जैनों में श्री जैन दिवाकरजी महाराज के पवित्र नाम की गूंज पुनः गूंज उठी और उनकी दिव्यता की पावन स्मृतियाँ भी ताजी हो उठीं।। गत वर्ष इन्दौर चातुर्मास से पूर्व ही कविरत्न श्री केवल मुनि जी महाराज जोकि श्री जैन दिवाकरजी महाराज के प्रमुख प्रभावशाली शिष्य है, उनके मन में जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ के निर्माण हेतु भी भावनाएं जाग रही थीं। उनकी इच्छा थी कि उस महापुरुष की स्मृति में जहाँ सैकड़ों जन-सेवी संस्थाओं की स्थापना हो रही हैं, वहाँ उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विराट स्वरूप का दर्शन कराने वाला एक श्रेष्ठ ग्रन्थ भी लोगों के हाथों में पहुंचना चाहिए। कविरत्न श्री केवल मुनि जी महाराज यद्यपि स्मृति ग्रन्थ के महत्त्व को जानते थे, पर अन्यत्र भी स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन की चर्चाएं चल रही थी अतः उस कार्य से स्वयं को पृथक ही रखा। उसी बीच आपने श्री जैन दिवाकरजी महाराज के विरल व्यक्तित्व का स्पष्ट दर्शन कराने वाली एक पुस्तक लिखी--'श्री जैन दिवाकर'। वैसे यह पुस्तक ही गागर में सागर थी। श्री जैन दिवाकरजी महाराज के व्यक्तित्व एवं थोड़े से विचारों को बड़ी सुन्दर ललित भाषा में तथा प्रामाणिक ढंग से प्रस्तुत किया गया । सर्व साधारण में यह प्रकाशन बहुत ही लोकप्रिय बना । चातुर्मास में कार्तिक शुक्ला १३ के देशव्यापी विशाल समारोह के प्रसंग पर मुनिश्री जी की प्रेरणा से 'तीर्थकर' (मासिक) का एक सुन्दर विशेषांक भी प्रकाशित हुआ । देश विदेश में विद्वानों व विचारकों में सर्वत्र ही उसकी सुन्दर प्रतिक्रिया रही। चातुर्मास के पश्चात् गत अप्रैल (वैशाख) महीने में ब्यावर में जन्म शताब्दी का विशाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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