Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay Publisher: Divya Darshan Trust View full book textPage 7
________________ प्रभु-पूजन की सात शुद्धियाँ प्रभुपूजा में (१) देह (२) वस्त्र (३) मन (४) भूमि (५) उपकरण (६) द्रव्य और (19) विधि शुद्धि का विधान है । देह-शुद्धि - स्नान करने पर भी फोड़े-फुसी, छाले, घाव आदि से पीप-मवाद निकलना बन्द न हो तो उसे स्वयं अंगपूजा न करनी चाहिए । किन्तु स्वयं के पुष्प, चन्दन आदि किसी को देकर पूजा करवानी चाहिए । स्वयं दूर से ही धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल आदि से अग्रपूजा और चैत्यवंदन आदि रूप भावपूजा करे | वस्त्र-शुद्धि - नये या धुले, श्वेत, अखंड एवं बिना फटे, बिना जले हुए धोती और दुपट्टे को पुरुष तथा घाघरा, ओढ़नी और कंचुक को स्त्री पहने । मन-शुद्धि - भौतिक इच्छा, यश-कीर्ति की वांछा, कौतुक, व्यग्रता आदि दोषों को टालकर मन पूजा में एकाग्र रखें। भूमि-शुद्धि - मंदिर में सर्वत्र एवं विशेष रूप से जहाँ प्रभु-पूजा, चैत्यवंदन आदि करना हो उस भूमि को स्वयं या अन्य से साफ करे, करावें | उपकरण-शुद्धि - पूजा के भाजन एवं जल, केसर, चन्दन, पुष्प आदि सामग्री पवित्र एवं श्रेष्ठ होनी चाहिए । द्रव्य-शुद्धि - न्यायोपार्जित स्वद्रव्य से पूजा करें । विधि-शुद्धि - भक्ति और बहुमानपूर्वक दर्शन-पूजन करते समय विधि का पूरा ख्याल रखना चाहिए । संक्षेप में विधि निम्नलिखित पाँच अभिगम, दश त्रिक के विवरण आदि से जानें । पाँच अभिगम मंदिर में प्रवेश करते समय पाँच बातों का ख्याल रखें - (१) सजीव द्रव्य, उपलक्षण से स्वयं के खाने-पीने के काम में आने वाली वस्तुओं को तथा लकड़ी, शस्त्र आदि को मन्दिर के बाहर रखें । (२) निर्जीव वस्तु, उपलक्षण से आभूषण, धन आदि कीमती चीजों को मन्दिर जाते समय साथ ले जावें । (३) प्रभु के दर्शन होते ही दोनों हाथ जोड़कर सिर पर अंजलि रचे । (४) दुपट्टा-खेश डालें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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