Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ आत्मशुद्धि, समभाव की प्राप्ति और ज्ञान-वृद्धि के लिए सुबह सदा ही प्रतिक्रमण, सामायिक और स्वाध्याय आदि करें । फिर प्रमुदित होकर ‘मंगलं भगवान् वीरो' आदि स्तुतिपाठ करें। बुरे स्वप्नों के अशुभ फल से बचने का उपाय नित्य प्रतिक्रमण न करने वाले भी यदि अशुभ स्वप्न को देखें तो अवश्य ही अनिष्ट फल से बचने के लिए कायोत्सर्ग करें | सूर्योदय से पूर्व ही चौदह नियम धारण करें और नवकारसी आदि का पच्चक्खाण करें । तीर्थस्वरूप माता-पिता को प्रणाम करें अत्यन्त उपकारी तीर्थस्वरूप माता-पिता आदि गुरुजनों को प्रणाम कर हमेशा तीर्थ-यात्रा के फल को प्राप्त करें। विनय से प्रसन्न गुरुजनों के आशीर्वाद से जीवन सफलता को पाता है। दर्पण में मुख-दर्शन तिलक करने के लिए, मंगल-हेतु एवं काल-ज्ञान के लिए दर्पण में अपना मुँह देखें। प्रभु दर्शन-वंदन-पूजन नित्य करें ___ अनन्त उपकारी श्री अरिहन्त परमात्मा के दर्शन-पूजन-वंदन अवश्य करें। दर्शन से अपने सम्यग्दर्शन को निर्मल करें । नित्य मासक्षमण के तप का फल प्राप्त करें | स्वद्रव्य से पूजन कर प्रभु-आज्ञापालन, चित्त-प्रसन्नता और अनन्त पुण्य के भागी बनें अर्थात् शीघ्र ही अभ्युदय एवं मोक्ष की प्राप्ति करें । कहा भी है - दर्शनाद् दुरितध्वंसी, वंदनाद् वाञ्छितप्रदः । पूजनात् पूरकः श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरदुमः ।।१।। दर्शन से पापों के नाशक, वंदन से वांछितों के प्रदायक और पूजन से सम्पदाओं के पूरक श्री जिनेश्वर देव साक्षात् कल्पवृक्ष हैं ।।१।। आगमों का भी कथन है कि श्रावक को दर्शन के बिना जलपान, पूजन किये बिना भोजन और शाम को मंगल दीपक, आरती आदि रूप पूजन बिना शयन करना उचित नहीं है। प्रभुपूजन में शुद्धियों का खास ध्यान रखें, जिनका स्वरूप निम्न प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 130