Book Title: Jain Dharm Vikas Book 02 Ank 07 Author(s): Lakshmichand Premchand Shah Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth View full book textPage 4
________________ २०६ गध विस.... ॥श्री आदिनाथ चरित्र पद्य ॥ (जैनाचार्य श्रीजयसिंहसूरीजी तरफथी मळेलं) ( ५. २, ५ ३ ५४ ७५ थी अनुसंधान) . संचित पुन्य प्रभाव महाबल, जन्मा इशान कल्प निज तपबल। श्रीप्रभनाम एक मिला विमाना, दिव्य देह सुन्दर बलधामा । लंछन पुन्य सुहावत अंगा, अवधिज्ञान विज्ञान परंगा। मनचाहा धर लेत शरीरा, अष्टसिद्धि सबगुण वरधीरा ॥ ललितांग यह सुन्दरनामा, आभूषण सोहत सबठामा। तरुण अवस्था सोभाकारी, मिठीद्वनि तिनलगे पियारी॥ 'सुन्दर बाल बने तिनकाला, गायनराग चलत मतवाला। कोलाहलसे गरज विमाना, सुनलिलितांग जगा ध्वनीकाना। सन्मुख द्रव्य देख अतिप्यारा, ललितदेव मन किया विचारा॥ अहो स्वप्न अथवा हे माया, मुझ कारण सब करत उपाया। सबहिंमुझे निजघारा स्वामी, सुन्दर रम्यं भवन किमिपामी ॥ इसपकार मन करत विचारा, तबहि तुरत प्रतिहार पुकारा । धन्य घड़ी शुभदायनी, स्वामी दर्शनकार । , धन्य भाग्य हमसबहिंका, मिटा हृदयका भार ॥ दयाद्रष्टीसे नाथ निहारो, सेवाको हम चहत इशारो॥ देवलोक यह द्वितिय इशाना, सबसुख सबहीवस्तु निधाना। जेहिविमान तुम राजतस्वामी, श्रीप्रभनाम पुन्यबल पामी ॥ तुमहिंसभा अति सुन्दर भारी, जोक्त सबहिं लगेपियारी। अंगरक्षक अरु सेवक नाना, सबहिखेड़ अतिसुन्दर बाना ॥ पुस्प पान श्मेण मय भूधर, करिये शेलमम खामीसुन्दर । गायन करत चतुर मधर्वा, बारांगन अतिसुन्दर सर्वा । प्रतिहारी के शब्दसुन, प्रगटा अवधि ज्ञान। पिछले जन्मको यादकर, किना धर्म बखान ॥ अहोपूर्व विद्याधर स्वामी, मंत्रीधर्मबोध किय कामी ॥ प्रयरत्नमय दिशालिनी, कर्मद्वेस वैराग्य प्रवानी । तेहि कारण यहफल सम पाया, अहो महानधर्म कर दाया।Page Navigation
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