Book Title: Jain Dharm Vikas Book 02 Ank 07
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 18
________________ २२० ...न te: - उपरोक्त उद्धार का वर्णन शत्रुजय तीर्थोद्धार प्रबन्ध में देखना चाहिये। प्रद्युम्नसूरिजीने ११ वी शताब्दी में ग्वालियर के राजा को अपना प्रचूरवाद शक्लो के जोरचरंजित किया था। (१०) गुजरात के मध्यकालीन इतिहास में वीराचार्य का स्थान बड़े ही महत्व का है। गुर्जरेश्वर महाराजा जैसिंहने वीरचार्य को उपहास में कहा "आपका यह जो महत्व है मात्र राजसे ही है। यदि मेरी राज्यसभा का त्याग कर अन्यत्र चले जाओ तो दीन भिक्षुकों सरीखी आपकी दशा होगी” (११) तर्ज-वीर क्या जानत हय मेवाड के है, (रचयिता-मुनि भद्रानंदविजय) जैन धर्म सदा तुम हृदय में धरो॥ क्यों न ईहलोक परलोक सुखमय करो॥ इसके सिद्धान्त हैं सब से ही उत्तम किसी धर्म से भी नहीं जो लघुत्तम ।। पक्षपात को त्यागी विचार करो॥ जैन धर्म सदा ॥१॥ स्याद्वाद्, नयवाद, सप्तभंगी जैनशास्त्रों में वर्णन है बहु जंगी॥ सच्चे धर्म को धारी भव ताप हरो॥ जैन धर्म सदा ॥२॥ कर्मवाद अहिंसा की अजब है घटा अन्य मत में मिलेगान ऐसी छटा॥ . आ ओ प्रेम से तत्व मिलान करो। जैन धर्म सदा ॥३॥ इसकी प्रतिष्ठा बहुत ही बढ़ी गांधी से नेता वै छाप पड़ी ॥ अब तो संशय जगत का बिलकुल हरो ।। जैन धर्म सदा ॥४॥ बौद्ध ओर वैदिक धरम का नहीं जम सकता है दृढतर चरण भी कही ॥ यदि जैनों के तत्वो से युद्ध करो ॥ जैन धर्म सदा ॥५॥ भद्रानंद का अन्तिम कहना धरो जैन धर्म को शीप नमो सब ही ॥ __ क्यों न ईहलोक परलोक सुखमय करो ॥ जैन धर्म सदा ॥६॥ (९) इतश्च गोपालगिरौ गरिष्ठः, श्रीबप्पमट्टिप्रतियोधितश्च । श्रीअमरोजौग्जीन तस्यपत्नी, काचित्वभूव व्यवहारी पुत्री ॥८॥ तत्कुक्षिजाताः किलराजकोष्ठा-गाराहगोत्रे सुकृतौकपात्रे। श्री ओशवंशे विशेद विशाले, तस्यान्वयेऽमीपुरुषाः प्रसिद्धाः॥९॥ - (प्राचीन जैनलेखसंग्रह प्र. २ संपादक जिनविजयजी) (१०) वादेजिते गोपगिरी शपूजितः सत्स्वर्णसिद्धिविमलेन्दुरप्यतः ॥१७॥ (पट्टावली समुच्चय प्र. २६) (११) राजाहमत्समां मुक्त्वा भवन्तोऽपि विदेशगाः। अनाया इवभिक्षाकाबाह्यमिक्षा भुजो नेतु ॥११॥ (प्रभावकचरित्र प्रष्ठ १६७)

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