Book Title: Jain Dharm Prakash 1947 Pustak 063 Ank 11
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 5
________________ आत्म का उद्देश्य । जब जिन्दगी का अंतदिन आजायगा । तब आत्मा पस्तायगा पस्तायगा शुभ कार्य जीवन में नहीं कुछ मी कीये । यह क्षोभ अंत में आयगा फिर आयगा खाने कमाने भोगने में यह गुमाई जिन्दगी । खाना कमाना तो यहीं रह जायगा रह जायगा ॥३॥ भोग में आसक्त होकर भोग को भोगे रहे। भोग का परिणाम संग में आयगा वह आयगा ॥४॥ देव गुरु और धर्म की की नहीं आराधना । बिन आराधना के कर्म नहीं कट जायगा कट जायगा ॥ ५ ॥ माराधना के वास्ते है पर्व की वह योजना । .इस योजना के लक्ष्य को चुक जायगा पस्तायगा ॥६॥ पछताने का परिणाम नहीं अंत में कुछ आयगा । इस लिये जाग्रत रहेगा वह सफल हो जायगा हो जायगा ॥७॥ जिनवाणी जाग्रति के लिये विश्व में ऐक श्रेष्ठ है । इस श्रेष्ठ कोही अभिष्ट समझे वह अमर हो जायगा हो जायगा।। अमर होने का ही जग में ऐक उद्देश्य है।। उस उद्देश्य को भूलेगा वह पस्तायगा पस्तायगा ॥९॥ विश्व के उद्देश्य न पुरण हुवे होगे कभी। आत्म उद्देश्य ही सार्थक अवश्य होजायगा होजायगा ॥ १० ॥ नीति अर्हन् से बनाना आरम के उद्देश्य को । सार जग में 'राज' येही पायगा फिर पायगा ॥ ११ ॥ राजमल भंडारी-आगर (मालवा) ॥ (१) जन्म, जरा, मृत्यु से मुक्त । (२) आत्महित का सदा ध्येय हो ।

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