Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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१४.
ते पांचबोलाकरीोलखीजे. द्रव्यथकी अनंता द्रव्य, क्षेत्रथकी जीवाकने, कालथकीबेनेद ए केक सिद्धांरीपादपणनही ने अंतपणनही. ए केकसिद्धांरीआदिने, पण अंतनही. नावथकी अरूपी, गुणथकी आत्मिकसुख, हिवेद्रव्य देवा, काल, नाव, गुणरी ओलखाणकहे-धर्मास्तिका यद्रव्यथकीतो एकद्रव्य क्षेत्रथकीलोकप्रमाण, कालथकी आदिअतंरहीत, जानथकी अरूपी, गुणथकी चालवानू साहा. अधर्मास्तिकाय द्रव्य थको एकद्रव्य, देवथकीलोकप्रमाण, कालथकी श्रादिअंतरहित, नायथकीअरूपी, गणथकी थिररहेवानुसाह्य. आकाशास्तिकागद्रव्ययकीतो एकद्रव्य. देवथकी लोकालोकप्रमाणे, कालथ की आदिअंतरहीत, नावयकी अरूपी, गुणव की नाजनगुण. कालव्यथकीतो अनंता व्य, देवथकी अढाइद्वीपप्रमाण, कालथकी आदि अंतरहित, नावथकी अरूपी, गुणथकी वर्तमान गुण. पुदगलास्तिकाय द्रव्यथकीतो अनंताद्रव्य क्षेत्रयकोलोकप्रमाण, कालश्की आदिअंतसहि त, जावथकीरूपी, गुणथकी गलेने मिले. जी

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