Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 206
________________ लटी काढे खोडीयां रे ॥५॥ कोइक गुणग्राम करे, घणा सारे सेवा रे॥ कोइ बोले अवर्ण वा द, उलटा काढे केवा रे ॥६॥ कोइक केहे वे पुरुष चतुर , पंडीत सुजाण रे॥ कोइ केहेव दीसे ने ठोठडु, मुढ अजाण रे॥७॥ इत्यादि क वचन सुणी, उत्तम साधु रे ॥ राग द्वेष नहि मनमांहि, ज्ञान नलो लागो रे॥ ८॥ एकन पी वीसमी, पूरी थइ ने ढाल रे ॥ दूषण सघ लां टालीने, साधुपणुं शुद्ध पाल रे ॥९॥ दुहा ॥ बुद्धि परिसह वीसमो, नाख गया नगवान ॥ ओबी बुद्धि हुवा भारत आणे नही, वधार नहीं करें अनिमान ॥ १॥ ढाल ॥२० मी॥विनय नगति करे गुरुत पीरे लाल, साखे सूतर शुद्धि हो मुनीसर ॥ ज्ञा न पायो ज्ञानी कने रे लाल, निज थारी बु दि हो मुनीसर ॥ बुद्धि परीसह वीसमोरे लाल ॥१॥ए आंकणी ॥ कोइ वखाण-वाणी देवे दे शनारे लाल, फोडे पराक्रम पूर हो मुनीसर ॥ घांचना देवे नली परें हो लाल, आलस करि देवे दूर हो मुनीसर ॥ बु० ॥२॥ कोइ आवे

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