Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 207
________________ 19 प्रश्न पूवारे लाल, कोइक पूरे बोल हो मुनी सर ॥ बतलावे ज्ञान नली परेरे लाल, पाटो ज्ञानरो खोल हो मुनीसर ॥ बु० ॥३॥ पंमी त जिके जापाजोरे लाल, नहि करे नण्यारो अनिमान हो मुनीसर ॥ लघुताइ करे आप पीरे लाल, माहारं अल्प सो ज्ञान हो मुनीस र ॥ बु० ॥४॥ हात बुद्धा पारसह ॥२०॥ दुहा ॥अन्नाण परिसह एकवीसमो, पालन व अंतराय ॥ मास पद आगे हुवा, मान तणे वश थाय ॥१॥अथ अन्नाण परिसह ॥२१॥ ढाल२१ मी॥ अन्नाण परिसह जाणी, भाख्यो श्रीकेवलनाणी ॥ उद्यम करीने गोखो, तोही च ढे नही अतर चोखो॥१॥सजीया नियठाने निगमोरे, समवसरणमें जेमो ॥नांगा लद्धि र दिने व्रत्ति, देसण वायका कायथति ॥२॥खंडा जोयणने नवतत्व, पूजे कोइ साध महंत ॥ लघु महादंडक ने बासठो, पूरियांशुंकरे खष्टो॥३॥3 त्तराध्ययन अध्ययन न भाव, वखाणवांच्यं नहि जावे ॥ जीवरा नेदने गुणठाणा जोगोरे, लेश्या दिक पूज्यां न करे शोगोरे ॥४॥ इत्यादिक

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