Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 205
________________ विस्तार, मुनि पोहातां मुगत मकार ॥४॥ यां रे उपरलें मिलें कीशो देखो, यारे करणी सा, पेखो।यां सरीखो नहीं कोई दूजो, यांने पारखांक रीने पूजो॥५॥ अढारमी ढाल पूरी कीधी, ज्ञान शीखामण दीधी॥थे तो राखजो निरमल मन्त्र, जिके साध जगतमें धन्न।६॥इति मेल परिसह। दुहा ॥ सकार पुकार उगपीसमो, परिसह कठप पीगण ॥ वले खम्या धर्म जाणिने, मा ह्या चतुर सुजाण ॥अथ सकार परिसह॥१९॥ ... ढाल १९ मी॥ एकण जणुं वीस, सकार पुकार तिणरो नाम ॥ तिा अनुसार हुं कलं, सुगजो चतुर सुजाण ॥ १ कोइक चरचे चं दणां, कोइक दे रे ॥रागडेपन मनमाय, मूल नहिं नेदे रे ॥२॥ कोइ केहेचे पूज्य पधारीया, श्रावक सुपारे । कोइ केहेवे किम बायां घरमां हे, थारो कांइ देणो रे ॥३॥ कोई दरिला दे ख राजी हुवे रे, कोइ केहेवे लागो मीठा रे ॥ को इ केहवे सामा अाया किहां रे, थारा दरिसण अदीठारे ॥४॥कोइक पगमें माथो देवे, हाथ जोडीयां रे॥ कोइक नकरे वंदण ने नाव, न

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