Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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१६.
न्याय ५२ दिसतीप्रथ्विकाय सुक्ष्मकेबादर ॥बाद रतेकिणन्याय ॥ दोशेबेइणन्याय ५३ पृथ्विकाय त्रशकेस्थावर ॥ स्थावरतेकिणन्याय ॥ हालेचा लेनहींईणन्याय ५४ अपकाय संजिकेअसंज्ञि॥ असंज्ञितेकिणन्याय॥मन नहिंइणन्याय ५५ अ पकायदीसतीसुक्ष्मकेबादराबादरतेकिणम्यायादे खायइणन्याय५६अपकायत्रशकेस्थावर ॥स्था वरहालेनहींइणन्याय५७ तेनकायसंजिकेअसजि असंजितेकिणन्याय ॥ मननहींइणन्याय ५८ ते जकायदीसतीसुक्ष्मकेवादर ॥, बादरतेकिणन्याय देखावे बेइणन्याय ५९ तेनकायत्रशकेस्था वर ॥ स्थावर तेकिणन्याय ॥ हालेचालेनहींइण न्याय ६. वायुकायसंजिअसज्ञि असंजितेकि णन्याय ॥ मननहींइणन्याय ६१ वायुकायदीस तीसुक्ष्मकेवादर ॥ बादर तेकिणन्याय ॥ देखाय बेइणन्याय ६२ वायुकायत्रशकेस्थावर ॥ स्थाव र तेकिणन्याय ॥ हालेचालेनहीइणन्याय ६१ वनस्पतिकाय संजिके असंजि ॥ प्रसंजी तेकी पन्याय ॥ मननहीइणन्याय ६४ वनस्पतिका यदीसतीसुमकेवादर ॥ बादर तेकिणन्याय दे

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