Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 180
________________ जोग इणन्याय ॥५१ संबरगमवायोगके मा दरवायोग्य ॥ श्रादरवायोग्यतो किंगन्यायकर्मा रारोकवारापरिणाम तेआदरवायोग्य इणन्याय संबरादरवायोग॥५२निर्जरागंडवायोगकेत्र दरवायोग आदरवायोग तेकिणन्याय ॥ क रमतोडवारापरिणामादरवायोग इणन्याय ॥ ५३ बंधगंडवायोग्य केआदरवायोग्य गमवायो ग्यो तेकिणन्याय ॥ शुनअशुन कर्मपुदगल गंडवा योग आदरवायोगनहीं इणन्याय ॥ ५४ मोदगंडवायोग्य केआदरवायोग्य. आद रवायोग्य तेकिणन्याय ॥ सकललोकनेअंतेसि बनवान आदरवायोग्य इणम्याय ॥ ५५ ध ििस्तकायरूपीकेअरूपीछे अरूपीनेतेकिणन्या य॥ पांचवर्णनहिंपावे इणन्याय ॥५६ अधर्मा स्तिरूपीकेअरूपी अरूपीतेकिणन्याय ॥ पांच वर्णनहींपावे इणन्याय ॥५७ आकाशास्तिकाय रूपीकेअरूपी ॥ आकाशास्तअरूपी तो किण. न्याय ॥ पांचवर्णनहींपावे इणन्यायं ॥ ५८ का लरूपीके अरूपी अरूपीछे तेकिन्णयाय पांचवर एनहीं पावेइणन्याय॥५९पुदगलरूपीकेअरूपीबे

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