Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 179
________________ तोमवारापरिणामशाहुकारने इणन्यायशाहुकारले ॥४४ बंधचोरकेशाहुकार ॥ दोनही नही ते कि गन्याय चोरशाहुकारतो जीवडे एतोअजीवळे इणन्याय ॥४५॥ मोदचोरकेशाहुकारशाहका र तेकिणन्याय सकलकर्मोथीमूकाणाते सिद्ध नगवानशाहुकारले इणन्याय ॥४६ जीवगंड वायोग्य केादरवायोग्य गंडवायोग्य तेकिण म्याय ॥ पोतेजीवानुनाजनकरे अनेराजीवनपर अविग्रहनावकरेनहीं इणन्यायजीवगंडवायोग्य ॥४७ अजीवगंमवायोग्यके आदरवायोग्य ॥ गंमवायोग्यतोकिणम्याय कोइपणअजीवनपरम मता नावनकरवोइणन्याय अनीवगंडवायोग्य .॥४८पुण्यगंडवायोग्य केादरवायोग्य गंडवाजोगले तोकिणन्याय ॥शुनाशुनकर्मपुदग लगंम्वायोग्य इणन्याय ॥४९ पापगंडवाजो मके आदरवाजोग पापगंडबाजोग किणन्याय ॥अशूनकर्मपुदगलगंडवायोग्य इणन्यायपाप गंडवायोग ॥ ५० श्रावगंडवायोग तो कि शन्याय ॥ श्राश्रयतोकर्माववारोबारणो. ते बारारंध्याआत्मा वशकरे मादे श्राश्रबगंगवा

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