Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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दुहा ॥ प्रागें अनेक साधानणी, दीधा दुः ख अनेक ॥ अचल रह्या मगीया नहिं, वारू
आणि विवेक ॥ १॥ अथ वध परिसह ॥१३॥ ___ ढाल १३ मी ॥ तेरमो परिसह वरण, व. धने तिणरो नाम ॥ सेवे तेहिज साधुजी,आ तम आणे निज ठाम ॥ नवियणसाधु तणा गु ण गाय ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ कोइ मारे चपेटी चाबका, हाथ पग देवरे बांध ॥ ओर मार देवे धणी, रीस नहिं तिलमात ॥ २० ॥२॥ गज सुकुमाल मोहोटा मुनि, सोमल परजाल्यु सीस ।। अंतगड हुवा केवली, नाव हुवा विश वावीस ॥ ज०॥३॥ मेतारज-मोहोठा मुनि, वध परिसह थाय ॥राग द्वेष दोनुं तय करी, मुगति बीराज्या जाय ॥१०॥४॥ पालक पापी पांचशे, साध पील्या रीश प्राण ॥ चोक डी चार खपायने, जाय पोहोता निरवाणाम ॥५॥खाल.उतारी खंधक तणी, सल नहि घाल्योरे नाक ॥ मुगति गया मोहोटा मुनि, रिहंत गया इम नाख ॥ न०॥६॥ सिंहण शरीर वलूरीयो, सुकोसल कीधो काल ॥ शरीर

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